Book Title: Anubhav ka Utpal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 178
________________ न अनुभव का उत्पल अपना-अपना अस्तित्व मैं अभी यह निर्णय नहीं कर पाया हूं कि दुनिया मेरे लिए है या मैं दुनिया के लिए हूं? जिस दिन यह निर्णय कर लूंगा उस दिन या तो दुनिया मेरे सिर पर होगी या मैं दुनिया के सिर पर होऊंगा। मैं अन्न खाता हूं और जल पीता हूं, पर मैं अन्न और जल के लिए नहीं हूं। क्या अन्न और जल मेरे लिए हैं ? मैं सूरज से आलोक पाता हूं, लिए नहीं हूं। क्या सूरज मेरे लिए है ? Jain Education International १६२ पर मैं For Private & Personal Use Only सूरज के www.jainelibrary.org

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