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अनुभव का उत्पल
भाग्य रचना
हर आदमी विष या अमृत खाने में जितना स्वतंत्र है, उतना उनके परिणाम भुगतने में स्वतंत्र नहीं है।
तुम्हारा वर्तमान समर्थ और पवित्र होगा तो अतीत और भविष्य कभी अन्धकारमय नहीं होगा ।
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झांको उस
तुम भाग्य की ओर मत झांको, तुम पुरुषार्थ की ओर, जो तुम्हारे भाग्य की रचना करता है।
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