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- अनुभव का उत्पल
पण्डित और साधक
पशु और पण्डित में जितना भेद है, उतना ही भेद पण्डित और साधक में है। पशु अहिंसा की भाषा नहीं जानता जबकि पण्डित जानता है। साधक वह है, जो उसकी भाषा जानने तक ही न रहे, उसकी साधना करे।
आर्य! तू ब्रह्मचारी होना चाहता है तो तू सब कुछ उसी के लिए कर। आस्वाद के लिए मत सूंघ, आस्वाद के लिए मत देख, आस्वाद के लिए मत चख, आस्वाद के लिए मत सुन और आस्वाद के लिए मत चिन्तन कर।
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