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- अनुभव का उत्पल )
ब्रह्मचर्य की फलश्रुति
काम वासना एक तीव्र मनोविकार है। क्रोध, भय और शोक का जैसे बुरा असर होता है, वैसे ही वासना-वेग से शरीर रोग- ग्रस्त और विकारमय बन जाता है। यह विकार पहले मन में उत्पन्न होता है। इसीलिए वह “मनोज" या “संकल्प-योनि" कहलाता है। साधक ने कहा
काम! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे। न त्वां संकल्पयिष्यामि, अतो मे न भविष्यसि ॥
काम! मैं जान गया, तू संकल्प से पैदा होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूंगा, फिर तू मेरे मन में कैसे पैदा होगा?
किन्तु यह सच है- सारे स्थूलिभद्र और सुदर्शन नहीं होते। साधारण लोग भोग का संकल्प करते हैं। उसका अनिष्ट परिणाम भोगते हैं। काम-वासना का अनिष्ट-परिणाम प्रधानतया वात-वह-मण्डल और अन्तःस्रावक पिण्डों पर होता है। काम वासना तीव्र होती है तो उसका परिणाम बहुत भयंकर होता है। कामी लोग बाहर से स्थूल लगते हैं, उनकी अन्तर की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं।
ब्रह्मचारी की विशेषता है-आत्म-बल, प्रतिभा और दृढ़ संकल्प।
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