________________
- अनुभव का उत्पल )
-
-
प्रचार
विकास का वास्तविक क्रम यही है- जो सोए हुए हैं, उन्हें जगाओ, जो जागे हुए हैं, उन्हें प्रगति की ओर ले जाओ।
प्रचार अपने आप में न गुण है और न दोष! शुद्ध साध्य की उपलब्धि के लिए शुद्ध साधनों द्वारा साधना के क्रम को प्रकाश में लाना प्रचार है और वह बुरा तो किसी प्रकार नहीं है।
-
६२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org