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- अनुभव का उत्पल)
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आत्मा और व्यवहार
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आत्मा के साथ व्यवहार की टक्कर होती है तब मनुष्य जितना कर्तव्यमूढ़ बनता है, उतना और कहीं नहीं बनता।
आत्मा की बात मानने पर व्यवहार टूटता है और व्यवहार साधने में आत्मा को गंवाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पूर्ण विवेक से काम लेना चाहिए।
व्यवहार को कटु न बनाते हुए आत्मा की रक्षा ही सर्वश्रेष्ठ है।
आत्मा के साथ खिलवाड़ करने वाला व्यवहार को भी भली भांति नहीं निभा सकता।
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