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— ( अनुभव का उत्पल -
अनुभव का उत्पल
मैं और वह
मैं चाहता हूं कि जो मैं देखता हूं, वह दूसरे भी देखें और जो मैं नहीं देख सकता, वह भी देखें।
मैं अपनी अच्छाइयों को अच्छी तरह देख लेता हूं। अपनी दुर्बलताओं को भी पैनी दृष्टि से देखता हूं। फिर भी बहुत सम्भव है- मुझमें जो विशेषताएं विकास पा सकती हैं, उन्हें में न जानता होऊ| जो कमजोरियां तर्क की ओट में छिपी पड़ी हैं, उन्हें न समझता होऊ।
__ मैं खुली पुस्तक की भांति स्पष्ट रहना चाहता हूं। जिस दिन अपनी अच्छाइयों की अभिव्यक्ति का साहस
और बुराइयों को न छिपाने का मनोभाव मुझमें प्रकट हो जाएगा, उस दिन जो मैं देखूगा, वही दूसरे देखेंगे। फिर मेरे और दूसरों के दर्शन में कोई भेद नहीं होगा।
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