________________
है |
अनुभव का उत्पल
पूर्णता की अनुभूति में
आन्तरिक रिक्तता से बाहरी भार का चाप बढ़ता
आत्मानुशासन की रिक्तता होती है, बाहरी नियन्त्रण बढ़ता है।
सहज आनन्द की रिक्तता होती है, मनोरंजन के साधनों का विकास होता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य की रिक्तता होती है, कृत्रिम साधनों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होने लगता है।
दृष्टि शक्ति की कमी होती है, उपनेत्र चक्षु के परिपार्श्व को आवृत कर लेता है।
वह
जिसे प्रिय, सुन्दर और स्वादु कहा जाता है, रिक्तता की अनुभूति में है। पूर्णता की अनुभूति में वह और स्वादु नहीं है।
प्रिय, सुन्दर
Jain Education International
१४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org