Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1376
________________ पण्हावागरणं सु. 1 अ. 1 1363 ट्ठाणा पाणवहकहासु अभिरमंता तुट्ठा पावं करेत्त होंति य बहुप्पगारं / तस्स य पावस्स फलविवागं अयाणमाणा वडढंति महब्मयं अविस्सामवेयणं वीहकालबहुदुक्खसंकडं णरयतिरिक्खजोणि, इओ आउक्खए चया असुभकम्मबहुला उववज्जति णरएसु हुलितं महालएसु वयरामयकुड्डरुद्दणिस्संधिदार. विरहियणिम्मदवभूमितलखरामरिसविसमणिरयघरचारएसु महोसिणसयापतत्तदुग्गंधविस्सउव्वेयजणगेसु बीभच्छदरिसणिज्जेसु णिच्च हिमपडलसीयलेसु कालोभासेसु य भीमगंभीरलोमहरिसणेसु भिरभिरामेसु णिप्पडियारवाहिरोग. जरापीलिए सु अतीवणिच्चंधकारतिमिस्सेसु पतिभएसु ववगयगहचंदसूरणक्खत्त. जोइसेसु मेयवसामंसपडलपोच्चडपूयरुहिरुविकण्णविलीणचिक्कणरसियावावणकुहियचिक्खल्लकद्दमेसु कुकलाणलपलित्तजालमम्मुरअसिक्खुरकरवत्तधारासुणि. सितविच्छ्यडंकणिवातोवम्मफरिसअतिदुस्सहेसु य अताणासरणकडयदुक्खपरितावणेसु अणबद्धणिरंतरवेयणेसु जमपुरिससंकुलेसु / तत्थ य अंतोमहत्तलद्धिभवपच्चएणं णिवत्त॑ति उ ते सरीरं हुंडं बीभच्छदरिसणिज्जं बीहणगं अट्रिपहारुणहरोमवज्जियं असुभ गंध-दुक्ख विसहं, ततो य पज्जत्तिमवगया इंदिएहि पंचहि वेदेति असुभाए वेयणाए उज्जलबलविउल उक्कडक्खरफरस. पयंडघोरबीहणगदारुणाए / किं ते ? कंदुमहाकुंमियपयणपउलणतवगतलण- . भटमज्जणाणि य लोहकडाहुकड्डणाणि य कोट्टबलिकरणकोट्टणाणि य सामलितिक्खग्गलोहर्केटकअभिसरणपसारणाणि फालणविदालणाणि य अब. कोडकबंधणाणि लट्ठिसयतालणाणि य गलगवलल्लंबणाणि सूलग्गभेयणाणि य आएसपवंचणाणि खिसणविमाणणाणि विघटुपणिज्जणाणि वज्झसयमातिकाणि य एवं ते। पुम्बकम्मकयसंचयोवतत्ता णिरयग्गिमहग्गिसंपलिता गाढदुक्खं महन्मयं कक्कसं असायं सारीरं माणसं च तिव्वं दुविहं वेदेति वेयणं पावकम्म. कारी बहूणि पलिओवमसागरोवमाणि कलणं पालेंति ते अहाउयं जमकाइय. तासिता य सदं करेंति भीया, कि ते? अविमायसामिभायबप्पतायजियवं मय मे मरामि दुब्बलो वाहिपीलिओऽहं कि दाणिऽसि ? एवं दारुणो णिद्दय मा देहि मे पहारे उस्सासेतं महत्तयं मे देहि पसायं करेहि मा रुस वीसमामि गेविज्जं मुयह मे मरामि, गाढं तोहाइओ अहं देह पाणीयं हंता पिय इमं जलं विमलं सीयलंति घेत्तण य परयपाला तवियं तउयं से देंति कलसेण अंज.

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