Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1401
________________ 1388 अंग-पविटु सुत्ताणि गुणणिम्मियाई पज्जवणामाणि होति अहिंसाए भगवईए // 21 // एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं पक्खी विव गमणं तिसिया विव सलिल खहियाणं विव असणं समहमज्झे व पोयवहणं चउप्पयाणं व आसमपयं दुहटियाणं व ओसहिबलं अडवीमज्झे विसत्थगमणं एत्तो विसिटुतरिया अहिंसा जा सा पुढविजलअगणिमास्यवणस्सइबीयहरियजलयरथलयरखहयरतसथावर. सवमयखेमकरी, एमा भगवई अहिंसा जा सा अपरिमियणाणदसणधरेहि सीलगुणविणयतवसंयमणायगेहि तित्थंकरेहि सव्वजगजीववच्छलेहि तिलोय. महिएहि जिणचदेहि सुदिट्टा ओहिजिहि विष्णाया उज्जुमईहि विदिट्ठा विपुलमहि विविदिआ पुश्वधरेहि अहीया वेउव्वीहिं पतिण्णा आभिणिबोहिय. णाणीहिं सुयणाणीहि मणपज्जवणाणीहिं केवलणाणीहि आमोसहिपहि खेलोसहिपतेहिं जल्लोसहिपतहि विप्पोसहिपहि,सम्वोसहिपतहि बीयबुद्धीहि कुटुबुद्धीहि पयाणुमारीहि संभिण्णसोएहि सुयधरेहि मणबलिएहिं वयबलिएहिं कायबलिएहि णाणबलिएहि सणबलिए हि चरित्तबलिएहि खीरासवेहि महुआसवेहि सप्पियासवेहि अक्खीणमहाणसिएहि चारणेहि विज्जाहरेहि चउत्थ. भत्तिहिं एवं जाव छम्मासभत्तिएहि उक्खित्तचरहिं णिक्खित्तचरएहि अतचरएहि पंतचरएहि लहूचरएहि समुदाणचरएहि अण्णइलाएहिं मोणचरएहि संसट्रकप्पिएहि तज्जायसंसदकप्पिाहि उवणिहिए हि सुद्धसणिएहि संखादत्तिरहि दिठुलाभिएहि अदिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुरिमड्डिएहि एक्का. सणिएहि णिविइएहि भिण्णपिंडवाइएहि परिमिपिंडवाइएहिं अंताहारेहि पंताहारेहि अरसाहारेहि विरसाहारेहि लुहाहारेहि तुच्छाहारेहि अंतजीवीहि पंतजीवीहि लहजीवीहि तुच्छजीवीहि उवसंतजीवीहि पसंतजीवीहि विवित्तजी. वीहि अखीरमहुसप्पिएहि अमज्जमंसासिएहि ठाणाइएहि पडिमट्ठाईहि ठाण कडिएहिं वीरासणिएहि णेसज्जिएहिं डंडाइएहिं लगंडसाईहिं एगपासहिं आया. वएहि अप्पावरहिं अणि[व] भएहि अकंड्यएहिं धुयकेसमंसुलोमणहि सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहि समणुचिण्णा सुयधरविइयत्थकायबुद्धीहिं धीरमइ. बद्धिणो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा णिच्छयववसायपज्जत्तयमईया णिच्चं सज्झायज्झाणअणबद्धधम्मज्झाणा पंचमहत्वयचरित्तजत्ता समिया समि. इसु समियपावा छविहजगवच्छला णिच्चमप्पमत्ता एएहि अण्णेहि य जा सा

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