Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1424
________________ विवागसुयं सु. 1 अ. 1 1411 अहं तुमहिं अब्मणुण्णाए समाणे मियग्गामं जयरं मज्झमझेणं अणुप्पविसामि मेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए, तए गं सा मियादेवी मम एज्जमाणं पासइ 2 ता हट्ठा तं चेव सव्वं जाव पूयं च सोणियं च आहारेइ, तए णं मम इमे अज्झथिए. समुप्पज्जित्था-अहो गं इमे दारए पुरा जाव विहरइ // 4 // से गं मंते ! पुरिसे पुत्वभवे के आसि ? कि-णामए वा किंगोए वा कयरंसि गामंसि वा जयरंसि वा ? कि वा दच्चा कि बा भोच्चा किं वा समायरित्ता केसि वा पुरा जाव विहरइ ? गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खल गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे णामं णयरे होत्था रिद्धथमियसमिद्धे वण्णओ। तत्थ णं सयदुवारे णयरे धणवई णामं राया होत्था वण्णओ। तस्स गं सयदुवारस्स गयरस्स अदुरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे णाम खेडे होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धे / तस्स गं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि होत्था, तत्थ गं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई णाम रटुकडे होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। से गं एक्काई रटकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं आहेवच्चं जाव पालेमाणे विहरइ / तए णं से एक्काई र० विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई बहहि करेंहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य देज्जेहि य भेज्जेहि य कुंतेहि य लंछपोसेहि य आलीवणेहि य पंथकोट्रेहि य ओवीलेमाणे 2 विहम्मेमाणे 2 तज्जेमाणे 2 तालेमाणे 2 गिद्धणे करेमाणे 2 विहरइ / तए णं से एक्काई रट्टकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स बहूणं राईसरतलवरमाडंबियकोडुंबियइब्भसेटिसेणावइसत्थवाहाणं अण्णेसिं च बहूणं गामेल्लगपुरिसाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य णिच्छएसु य ववहारेसु य सुणमाणे भणइ ण सुणेमि असुणमाणे भणइ सुणेमि एवं पस्समाणे भासमाणे गिण्हमाणे जाणमाणे / तए णं से एक्काई रट्टकूडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं कलिकलसं समज्जिणमाणे विहरइ / तए णं तस्स एक्काइयस्स रटुकडस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगा. यंका पाउन्भूया, तं०-सासे कासे जरे दाहे कुच्छिसूले भगंदरे। अरिसा अजीरए दिट्ठीमुद्धसूले अकारए // 1 // अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू उयरे कोढे /

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