Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1463
________________ 1450 अंग-पविट्ट सुत्ताणि च उविहाए संवाहणाए संवाहावेइ 2 सुरभिणा गंधवट्टएणं उबट्टावेइ 2 तिहि उदएहि मज्जावेइ तं०-उसिणोदएणं सीओदएणं गंधोदएणं, 2 विउलं असणं 4 भोयावेइ 2 सिरीए देवीए हायाए जाव पायच्छित्ताए जिमिय मत्तरागयाए तए णं पच्छा हाइ वा भुंजइ वा उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ / तए गं तीसे देवदत्ताए देवीए अग्णया कयाइ पुव रत्तावरत्तकालसमयसि कुटुं. बजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए 5 समप्पण-एवं खल पूमणंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाव विहरइ तं एएणं वक्खवेणं णो संचाएमि अहं पूसणंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई० मुंजमाणी विहरित्तए तं रोयं खलु मम सिरिदेवि अग्गिपओगेण वा सत्थ. विस० मंतप्पओगेण वा जीवियाओ ववरो. वित्तए 2 त्ता पूसणंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई भोगमोगाई मुंजमाणीए विह रित्तए, एवं संपेहेइ 2 ता सिरीए देवीए अतराणि य 3 पडिजागरमाणी विहर इ / तए णं सा सिरी देवी अण्णया कयाइ मज्जाइया विरहियसणिज्जसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था / इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता सिरीदेवी मज्जाइयं विरहियसयणिज्जसि सुहपसुत्तं पासइ 2 ता दिसालोयं करेइ 2 ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ 2 ता लोहदंडं परामसइ 2 त्ता लोहदंड तावेइ 2 तत्तं समजोइ भयं फुल्लकिसुरासमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता सिरीए देवीए अवाणंसि पक्खि वइ / तए णं सा सिरी देवी महया 2 सद्देणं आरसित्ता कालधम्मणा संजुत्ता / तए गं तीसे सिरीए देवीए दासचेडीओ आरसियसई सोच्चा णिसम्म जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छंति 2 देवदत्तं देवि तओ अवक्कम. माणि पासंति 2 ता जेणेव सिरी-देवी तेणेव उवागच्छंति 2 सिरि देवि णिप्पाणं णिच्चेठं जीवियविप्पजढं पासंति 2 ता हा हा ! अहो ! अकज्जमितिकटट रोयमाणीओ कंदमाणीओ विलवमाणीओ जेणेव पुसणंदी राया तेणेव उवागच्छंति २त्ता पूसदि रायं एवं वयासी-एवं खल सामी! सिरीदेवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया / तए पं से पूसगंदी राया तासि दासचेडीणं अंतिए एयमलैं सोच्चा णिसम्म महया माइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुणियत्ते विव चंपगवरपायवे धसत्ति धरणीयलंसि सवर्णोहि संणिवडिए / तए गं से पूसणंदी राया महत्तंतरेण आसत्थे वीसत्थे

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