Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1469
________________ 1456 अंग-पविटु सुत्ताणि वियाणित्ता पुव्वाणुपुन्वि जाव दूइज्जमाणे जेणेव हत्यिसीसे णयरे जेणेव पुप्फकरंडय उज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं गिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ परिसा राया णिग्गया। तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तं महया जहा पढमं तहा णिग्गओ, धम्मो कहिओ, परिसा राया पडिगया / तए गं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हतु४० जहा मेहे तहा अम्मापियरो आपुच्छइ णिक्खमणाभिसेओ तहेव जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव बंभमारी / तए णं से सुबाहू अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ 2 ता बहूहि चउत्थछट्टट्ठमतवोविहाहि अप्पाणं भाबित्ता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झसित्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवताए उववण्णे / से गं ताओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चहत्ता माणुस्सं विग्गहं लमिहिइ 2 ता केवलं बोहि बुझिहिइ 2 ता तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वइस्सइ, से गं तत्थ बहूई वासाई सामण्णं पाउणिहिइ आलोइयपडिक्कते समाहिकाल. सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उवव०से गं ताओ देवलोगाओ.....माणुस्सं पव्वज्जा बंभलोए माणुस्सं तओ महासुक्के तओ माणुस्सं आणए. देवे तओ माणु. स्सं तओ आरणए देवे तओ माणस्सं सम्वसिद्धे / से गं तओ अणंतरं उव्वद्वित्ता महाविदेहे वासे जाइं० अड्डाई.....जहा दढपइण्णे सिम्मिहिइ 5 / एवं खल जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमझें पण्णसे // 31 // पढमं अज्झयणं समत्तं / / भद्दणंदी णामं बीयं अज्झयणं दोच्चस्स गं उक्खेवो एवं खल जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमपुरे णयरे, थभकरंडे उज्जाणे, धण्णो जक्खोधणावहो राया सरस्सई देवी, सुमिणदंसणं कहणं जमणं बालत्तणं कलाओ, य जोव्वणं पाणिग्गहणं वाओ पासा० भोगा य। जहा सुबाहुस्स णवरं मद्दणंदी कुमारे सिरिदेवीपामोक्खाणं पंचस० सामीसमोसरणं,

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