Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ विवागसुयं सु. 1 अ. 4 1431 ड्ढेति जहा उज्झियए जाव जम्हा गं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगडस्स हेट्ठा ठाविए तम्हा गं होउ णं अम्हं एस दारए सगडे णामेणं, सेसं जहा उज्झि. यए सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए मायावि कालगया। से वि सयाओ गिहाओ णिच्छुढे / तए णं से सगडे दारए सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे सिंघाडग.... तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सदि संपलग्गे यावि होत्था / तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ णिच्छु. भावेइ 2 सुदरिसणियं गणियं अभितरियं ठावेइ 2 ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ / तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ णिच्छुढे समाणे अण्णत्य कथवि सुई वा..... अलम०अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणा-गेहं अणुप्पविसइ 2 तासुदरिसणाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ / इमं च णं सुसेणे अमच्चे व्हाए जाव विमूसिए मणस्सवग्गराए जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गेहे तेणेव उवागच्छइ उबागच्छित्ता सगडं दारयं सुदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई भोगभोगाई मुंजमाणं पासइ पासित्ता आसुरुत्ते जाव मिसि. मिसेमाणे तिवलियं मिडि पिडाले साहट्ट सगडं दारयं पुरिसेहि गिण्हावेइ 2 अदि जाव महियं करेइ 2 अवओडयबंधणं करेइ 2 ता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु सामी ! सगडे दारए ममं अंतेउरंसि अवरद्धे / तए गं से महचंदे राया सुसेणं अमच्चं एवं वयासी-तुमं चेव गं देवाणप्पिया ! सगडस्स दारगस्स दंडं णिवत्तेहि। तए गं से सुसेणे अमच्चे महचंदेनं रण्णा अब्भणुण्णाए. समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं बझं आणवेइ / तं एवं खल गोयमा ! सगडे दारए पुरापोराणाण... पच्चणमवमाणे विहरइ // 21 // सगडे गं भंते ! दारए कालगए कहि गच्छिहि कहि उववज्जिहिइ ? सगडे गं दारए गोयमा! सत्तावणं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिमागावसेसे दिवसे एगं महं अयोमयं तत्तं समजोइ भूयं इत्यिपडिमं अवयासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रइयत्ताए उववज्जिहिइ / से गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे णयरे मातंगकुलंसि जुगलत्ताए पच्चायाहिइ / तए गं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिवत्तबारसगस्स इमं एयारूवं गोणं
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