Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1453
________________ 1440 __ अंग-पविट्ठ सुत्ताणि अज्झथिए० समुप्पण्णे-एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्यवाहेणं सद्धि बहूई वासाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, णो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि / तं धण्णाओ गं ताओ अम्मयाओ सपुष्णाओ कयत्थाओ कयपु० कयलक्खणाओ सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले जासि मण्णे णियगकुच्छिसंभयाई थणदुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाइं मम्मणपजंपियाई थणमूलकवखदेसभागं अभिसरमाणयाई मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहिं गिहिऊण उच्छंगणिवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पमणिए / अहं गं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एगमवि ण पत्ता, तं सेयं खलु मम कल्लं जाव जलं ते सागरदतं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबहुं पुप्फवस्थगंधमल्लालंकारं गहाय बहुमित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणमहिलाहिं सद्धि पाडलिसंडाओ णयराओ पडिणिवखमित्ता बहिया जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्वाययणे तेणेव उवागच्छित्तए तत्थ णं उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणं करित्ता जाणुपायवडियाए ओवायइत्तए-जइ णं अहं देवाणप्पिया ! दारयं वा दारियं वा पयामि तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खय-णिहिं च . अणुवइस्सामित्तिकट्ट ओवाइयं उवाइणित्तए, एवं संपेहेइ 2 ता कल्लं जाव जलंते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ 2 ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणु प्पिया ! तुहिं सद्धि जाव ण पत्ता, तं इच्छामि गं देवाणु प्पिया ! तुहिं अब्मणुष्णाया जाव उवाइ णित्तए / तए णं से सागरदत्ते स० गंगदत्तं भारियं एवं वयासी-ममंपिणं देवाणु० एस चेव महोरहे कहं णं तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जसि ? गंगदत्ताए भारियाए एयमझें अणुजाणइ / तए णं सा गंगदत्ता भारिया सागरदत्तसत्थवाहेणं एयम© अब्भणुण्णाया समाणी सुबहुं पुष्फ जाव महिलाहिं सद्धि सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ 2 त्ता पालिसंडं गयरं मज्झमझेणं णिग्गच्छइ 2 ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ 2 ता पुवखरिणीए तीरे सुबहु पुष्फवस्थगंधमल्लालंकारं ठवेइ 2 ता पुक्खरिणि ओगा. हेइ 2 ता जलमज्जणं करेइ 2 ता जलकीडं करेइ 2 त्ता हाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता उल्लपडसाडिया पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ 2 ता तं पुप्फ०गिण्हइ २त्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता उंबर.

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