Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1427
________________ 1414 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि गच्छइ 2 ता करयलपरिग्गहियं.....एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मियादेवी णवण्हं मासाणं.....जाव आगिइमेते, तए णं सा मियादेवी तं हंडं अंधारूवं पासइ 2 त्ता भीया तत्था तसिया उविग्गा संजायभया ममं सद्दावेइ 2 त्ता एवं क्यासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि, तं संदिसह णं सामी ! तं दारगं अहं एगते उज्झामि उदाहु मा ? तए णं से विजए खत्तिए तीसे अम्मधाईए अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म तहेव संभंते उद्वाए उठे 2 त्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ 2 ता मियादेवि एवं वयासी-देवाणप्पिया ! तुम्भं पढमं गन्भे तं जइ गं तुमं एवं (दा०) एगते उक्कुरुडियाए उज्झासि (तो)तओ णं तुम्भं पया णो थिरा भवि. स्सइ, तो गं तुमं एवं दारगं रहस्सिययंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणणं पडिजागरमाणी 2 विहराहि तो णं तुम्भं पया चिरा भविस्सइ / तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स तहत्ति एयम→ विणएणं पडिसुणेइ 2 ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी 2 विहरइ, एवं खल गोयमा ! मियापुत्ते दारए पुरापोराणाणं जाव पच्चणभवमाणे विहरइ // 5 // मियापुत्ते णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबद्दीवे भारहे वासे वेय. ड्रगिरिपायमले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ, से गं तत्थ सीहे भविस्सइ अहम्मिए जाव साहसिए सुबहुं पावं जाव समज्जिणइ 2 ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमटिइएसु जाव उववज्जिहिइ, से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ, तत्थ गं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई......से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिइ, तत्थ-वि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवमाई...... से णं तओ सीहेसु य..... तयाणंतरं चोत्थीए उरगो पंचमी० इत्थी० छट्ठी० मणुया० अहेसत्तमाए, तओ अणंतरं उध्वट्टित्ता से जाइं इमाइं जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ-कच्छ भवगाहमगर संसुमाराईणं अडतेरस जाइकुलको डिजोणिपमुहसयसहस्साई......तत्थ णं एगमेगंसि जोणी विहाणंसि अणेगसयसहस्सख़त्तो

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