Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ विवागसुयं सु. 1 अ, 3 1425 कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि जाव झियाइ / तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरिभारियं ओहय जाव पासइ 2 ता एवं वयासी-कि गं तुम देवाणुप्पिया ! ओहय जाव झियासि ? तए णं सा खंदसिरी भा० विजयं एवं वयासी-एवं खल देवाणप्पिया ! मम तिण्हं मासाणं जाव झियामि / तए गं से विजए चोरसेणावई खंदसिरीए भारियाए अंतिए एयमलैं सोच्चा णिसम्म खंदसिरिभारियं एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पियत्ति एयमझें पडिसुणेइ / तए गं सा खंदसिरीभारिया विजएणं चोरसेणावइणा अन्भणुण्णाया समाणी हट्टतुट्ट० बहूहि मित्त जाव अण्णाहि य बहूहि चोरमहिलाहिं सद्धि संपरिवडा व्हाया जाव विभूसिया विउलं असणं 4 सुरं च 6 आसाएमाणी 4 विहरइ जिमियभत्तत्तरागया पुरिस-वत्था संणद्धबद्ध जाव आहिडमाणी दोहलं विणे। तए णं सा खंदसिरिभारिया संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला वोच्छिण्णवोहला संपण्णवोहला तं गन्भं सुहंसुहेणं परिवहइ / तए णं सा खंदसिरी चोरसेणावहणी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए गं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स महया इड्ढीसक्कारसमदएणं दसरतं ठिहवडियं करेइ / तए गं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स एक्कारसमे दिवसे विउलं असणं 4 उवक्खडावेइ 2 मित्त-णाइ० आमंतेइ 2 ता जाव तस्सेव मित्त-णाइ० पुरओ एवं वयासी-जम्हा गं अम्हं इमंसि दारगंसि गम्भगयंसि समाणंसि इमे. एयारूवे दोहले पाउन्भूए तम्हा गं होउ अम्हं दारए अभग्गसेणे णामेणं तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाईए जाव परिवड // 17 // तए गं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था अट्ट दारियाओ जाव अटुओ दाओ...उपिपासा......मुंजमाणे विहरइ / तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते / तए णं से अभग्गसेणे * कुमारे पंचहि चोरसएहि सद्धि संपरिवडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं णीहरणं करेइ 2 ता बहुइं लोइयाई करेइ 2 ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था / तए गं ते पंच चोरसयाई अण्णया कयाइ अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया 2 चोरसेणावइत्ताए अभिसिचंति / तए णं से अमग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई __जाए अहम्मिए जाव कप्पायं गिण्हइ / तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं
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