Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ विवागसुयं सु. 1 अ. 3 1427 वई तेसि चारपुरिसाणं अंतिए एयमठे सोच्चा णिसम्म पंचचोरसयाई सद्दावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-एवं खल देवाणुप्पिया ! पुरिमताले णयरे महाबले जाव तेणेव पहारेत्व गमणाए (आगए, तए णं से अभग्गसेणे ताई पंचचोरसयाई एवं वयासी-तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं तं दंडं सालाडवि चोरपल्लि असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए / तए णं ताई पंचचोरसयाई अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति जाव पडिसुणेति / तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ 2 ता पंचहि चोरसएहि सद्धि हाए जाव पायच्छिते मायणमंडवंसि तं विउलं असणं४ सुरं च 6 आसाएमाणे 4 विहरइ / जिमियमुत्तत्तरागए वि य गं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभए पंचहिं चोरसहिं. सद्धि अल्लं चम्म दुरूहइ 2 ता संणद्धबद्ध जाव पहरणेहि मग्गइएहि जाव रवेणं पच्चावरहकालसमयंसि सालाडवीओ चोरपल्लीओ णिग्गच्छइ 2 ता विसमदुग्गगहणं लिए गहियमत्तपाणे दंडं पडिवालेमाणे चिट्ठइ / तए गं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छइ 2 ता अभग्गसेणेणं चोरसेणावईणा सद्धि संपलग्गे यावि होत्था / तए गं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तं दंडं खिप्पामेव हयमहिय जाव पडिसेहिइ / तए णं से वंडे अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा हय जाव पडिसेहिए समाणे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमितिकटु जेणेव पुरिमताले णयरे जेणेव महाबले राया तेणेव उवागच्छइ 2 ता करयल० एवं वयासी-एवं खल सामी ! अभग्गसेणे चोरसेणावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए णो खलु से सक्का केणइ सुबहएणावि आसबलेण वा हत्थिवलेण वा जोहबलेण वा रहबलेण वा चाउरिगिणि-पि. उरंउरेणं गिण्हित्तए ताहे सामेण य भेएण य उवप्पयाणेण य वीसंभमाणे उवयए यावि होत्था / जे वि य से अमितरगा सीसगभमा मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणं च विउलधणकणगरयणसंतसारसावएज्जेणं भिदइ अमग्गसेणस्स य चोरसेणावइस्स अभिक्खणं 2 महत्थाई महग्याइं महरि. हाई पाहुडाई पेसेइ 2 अभग्गसेणं चोरसेणावई वीसंभमाणेइ // 18 // तए गं से महाबले राया अण्णया कयाइ पुरिमताले गयरे एगं महं महइमहालियं कूडागारसालं करेइ अणेगक्खं मसयसंणिविद्रं पासाईयं दरसणिज्ज० / तए गं
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