Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1428
________________ विवागसुयं सु० 1 अ. 2 1415 उद्दाइत्ता 2 तत्थेव भुज्जो 2 पच्चायाइस्सइ, से गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता.... चउप्पएसु उरपरिसप्पेसु भयपरिसप्पेसु खहयरेसु चरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणप्फइएसु कडुयरुखेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ० तेउ० आउ० पुढवी० अणेगसयसहस्सखुत्तो.....से गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्टपुरे गयरे गोणताए पच्चायाहिइ, से णं तत्थ उम्मक्क जाव अण्णया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महामईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुप. इट्ठपुरे पयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ / से गं तत्थ उम्मक्कबालभावे जाव जोवणगमणप्पत्ते तहालवाणं थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ, से गं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए जाव बंभयारी, से गं तत्थ बहई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ, से गं तओ अगंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति अढाई.....जहा दढपइण्णे सां चेव वत्तव्वया कलाओ जाव सिज्झिहिइ 5 / एवं खल जंब ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढ मस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते तिबेमि // 6 // // पढमं अज्झयणं समत्तं // उज्झियए णामं बीयं अज्झयणं जइ गं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबु अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे णाम जयरे होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धे / तस्स गं वाणियगामस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसी. भाए दुईपलासे णामं उज्जाणे होत्था / तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था। तत्थ वाणियगामे मित्ते णामं राया होत्था वण्णओ। तस्स णं मित्तस्स रणो सिरी-णामं देवी होत्था वण्णओ / तत्थ गं वाणियगामे कामज्झया णामं गणिया होत्था अहीण जाव सुरूवा बावत्तरीकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया एगूणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीसरइगुणप्पहाणा

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