Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 1412
________________ पहावागरणं सु. 2 अ. 5 1399 संभचेरगुत्ते / पंचमगं आहारपणीयणिद्ध भोयणविवज्जए संजए सुसाहू ववगयखीर-दहिसप्पिणवणीयतेल्ल-गुलखंडमच्छंडिगमहुमज्जमंसखज्जगविगइपरिचत्त. कयाहारे ण दप्पणं ण बहुसो ण णि इगं ण सायसूपाहियं ण खद्धं तहा भोत्तन्वं जहा से जायामाया य भवइ / ण य भवइ विन्भमो ण भसणा य धम्मस्स, एवं पणीयाहारविरइ समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमणविरयगाम. धम्मे जिइंदिए बमचेरगुत्ते / एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरिय होइ सुपणिहियं इमेहिं पंचहि वि कारणेहि मणवयणकायपरिरक्खिएहिं णिच्चं आमरणंतं च एसो जोगो यन्वो धिइमया मइमया अणासवो अकलसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाओ / एवं चउत्थं संवदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्रियं आराहियं आणाए अणुपालियं भवइ, एवं णायमणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं, चउत्थं संवरदारं समत्तंतिबेमि // 27 // ॥.चउत्थं अज्झयणं समत्तं / / पंचमं अज्झयणं ___ जंबू ! अपरिग्गहसंवडे य समणे आरंभपरिगहाओ विरए, विरए कोहमाणमायालोहा एगे असंजमे दो चेव रागदोसा तिणि य दंडगारवा य गुत्तीओ तिण्णि तिणि य विहिणाओ चत्तारि कसाया झाणसण्णाविकहा तहा य हंति चउरो पंच य किरियाओ समिइइंदियमहव्वयाइं च छज्जीवणिकाया छच्च लेसाओ सत्त भया अटु य मया णव चेव य बंभचेरवयगुत्ती दसप्पगारे य समणधम्मे एकारस य उवासगाणं बारस य भिक्खपडिमा किरियठाणा य भयगामा परमाधम्मिया गाहासोलसया असंजमअबंभणायअसमाहिठाणा सबला परिसहा सूयगडज्झयणदेवभावणउद्देसगणपकप्पपावसुयमोहणिज्जे सिद्धाइगुणा य जोगसंगहे तित्तीसा आसायणा सुरिदा आदि एक्काइयं करेत्ता एक्कुत्तरियाए वड्ढीए तीसाओ जाव उ भवे तिगाहिया विरईपणिहीसु अविरईसु य एवमाइसु बहूसु ठाणेसु जिणपसत्थेसु अवितहेसु सासयभावेसु अवट्ठिएसु संकं कंखं गिराकरेत्ता सद्दहए सासणं भगवओ अणियाणे अगारवे अलुद्धे अमूढमण. वयणकायगुत्ते॥२८॥जो सो वीरवरवयणविरइपवित्थरबहुविहप्पयारो सम्मत्त.

Loading...

Page Navigation
1 ... 1410 1411 1412 1413 1414 1415 1416 1417 1418 1419 1420 1421 1422 1423 1424 1425 1426 1427 1428 1429 1430 1431 1432 1433 1434 1435 1436 1437 1438 1439 1440 1441 1442 1443 1444 1445 1446 1447 1448 1449 1450 1451 1452 1453 1454 1455 1456 1457 1458 1459 1460 1461 1462 1463 1464 1465 1466 1467 1468 1469 1470 1471 1472 1473 1474 1475 1476