Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1410
________________ पण्हावागरणं सु. 2 अ. 4 1397 सुक्कज्झाणं णाणेसु य परमकेवलं तु पसिद्ध लेसासु य परमसुक्कलेस्सा तित्थयरे चेव जहा मुणोणं वासेसु जहा महाविदेहे गिरिराया चेव मंदरवरे वणेसु जहा गंदणवणं पवरं दुमेसु जहा जंबू सुदंसणा वीसुयजसा जीय णामेण य अयं दीवो, तुरगवई गयवई रहवई गरवई जह वीसुए चेव राया रहिए चेव जहा महारहगए, एवमणेगा गुणा अहीणा भवंति एग्गंमि बंभचेरे जंमि य आरा. हियंमि आराहियं वयमिणं सव्वं, सीलं तवो य विणओ य संजमो य खंती गत्ती मुत्ती तहेव इहलोइयपारलोइयजसे य कित्ती य पच्चओ य, तम्हा णिहयण बंभचेरं चरियव्वं सब्वओ विसुद्धं जावज्जीवाए जाव सेयट्ठिसंजउत्ति, एवं भणियं वयं भगवया / तं च इम-पंचमहव्वयसुव्वयमूलं, समणमणाइलसाहुसु. चिण्णं / वेरबिरामणपज्जवसाण, सम्वसमहमहोदहितित्थं // 1 // तित्थयरेहि सुदेसियमग्गं, गरयतिरिच्छविवज्जियमग्गं / सवपवित्तिसुणिम्मियसारं, सिद्धिविमाणअवंगयदारं // 2 // देवरिंदणमंसियपूर्व सव्वजगत्तममंगलमग्गं / दुद्धरिसं गणणायगगमेक्क, मोक्खपहस्स वडिसगमयं // 3 // जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू जो सुद्धं चरइ बंभचेरं / इमं च रईरागवोसमोहपवडणकरं किमज्झपमायदोसपासत्थसीलकरणं अभंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खाखसीसकरच. रणवयणधोवणसंबाहणगायकम्मपरिमद्दणाणुलेवणचुण्णवासधूवणसरीरपरिमंडगबाउसियकहसिय * भणियणट्टगीयवाइयणडणट्टगजल्लमल्लपेच्छणवेलंबगं जाणिय मिगारागाराणि य अण्णाणि य एवमाइयाणि तवसंजमबंभचेर. घाओवघाइयाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयवाई सव्वकालं, मावियवो भवइ य अंतरप्पा इमेहि तणियमसीलजोहि णिच्चकालं / कि ते ? अण्हाणगअदंतधावणसेयमलजल्लधारणं मूणवयके सलोए य खमदमअचेलगखुप्पिवासला. घवसीउसिणकट्रसेज्जामिणिसेज्जापरघरपवेस-लद्धावलद्ध-माणावमाणणिदण समसगफासणियमतवगणविणयमाइएहि जहा से घिरतरगं होइ बंमचेरं इमं च अबंभचेरविरमणपरिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं. पेच्चाभावियं आगमेसिभ सुद्धं याउयं अकुडिलं अणुसरं सव्वदुक्खपावाणं विउसमणं / तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थं वयस्स होंति अबंभचेरवेरमणपरिरक्खणट्टयाए / पढमं सयणासणघरदुवारअंगणआगासगवक्खसालअभि.

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