Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ विवागसुयं पढमो सुयक्खंधो मियापुत्ते णामं पढमं अज्झयणं तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णाम णयरी होत्था वण्णओ, पुण्णमद्दे चेइए // 1 // तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे णामं अणगारे जाइसंपण्णे वण्णओ चउद्दसपुव्वी चउणाणोवगए पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिबडे पुष्वाणुपुटिव जाव जेणेव पुण्णमद्दे चेइए अहापडि. रूवं जाव विहरइ, परिसा णिग्गया, धम्म सोच्चा णिसम्म जामेव दिसि पाउभया तामेव दिसि पडिगया। तेणं कालेगं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू णामं अणगारे सत्तस्सेहे जहा गोयमसामी तहा जाव साणकोट्ठोवगए विहरइ / तए णं अज्जजंबू णाम अणगारे जायसढे जाव जेणेव अज्जसुहम्मे अणगारे तेणेव उवागए तिक्त्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ 2 ता बंदइ णमं. सइ वं०२ त्ता जाव पज्जुवासइ,[२] एवं वयासी-जागं भंते ! समणेणं भग. वया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयमठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स गं भंते ! अंगस्स विवागसुयस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अठे पण्णत्ते ? तए गं अज्जसुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासी-एवं खल जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं०-दुहविवागा य सुहविवागा य। जइ णं मंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं०-दुहविवागा य सुहधिवागा य, पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता ? तए गं अज्जसुहम्मे अणगारे जंब अणगारं . एवं वयासी-एवं खल जंबू ! समणेणं० आइगरेणं तित्थगरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं०-'मियापुत्ते य उज्झियए अभग्ग सगडे बहस्सई गंदी / उंबर सोरियदत्ते य देवदत्ता य अंजू य // 1 // ' जइ गं
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