Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1415
________________ 1402 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि रोव्व वसभेव जायथामे सीहे वा जहा मियाहिवे होइ दुप्पधरिसे सारयसलिलं व सुद्धहियए भारंडे चेव अप्पमत्ते खग्गिविसाणं व एगजाए खाणं चेव उड्डकाए सुग्णागारेव्व अप्पडिकम्मे सुण्णागारावणस्संतो णिवायसरणप्पदीवपज्झाणमिव णिप्पकंपे जहा खरोचेव एगधारे जहा अही चेव एगदिट्ठी आगासं चेव णिरालंबे विहगे विव सम्बओ विप्पमक्के कयपरणिलए जहा चेव उरए अप्पडिबद्ध अणिलोग्व जीवोव्व अप्पडिहयगई गामे गामे एगरायं णयरे गयरे य पंचरायं दूइज्जते य जिइंदिए जियपरीसहे णिमओ विऊ सच्चित्ताचित्तमीसहि दवेहि विरायं गए संचयओ विरए मत्ते लहुए गिरवकंखे जीवियमरणासविप्पमुक्के हिस्संधि णिव्वणं चरित्तं धीरे कारण फासयंते सययं अज्ञप्पझाणजुत्ते णिहुए एगे चरेज्ज धम्मं / इमं च परिग्गहवेरमणपरिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्त. हियं पेच्चाभावियं आगमेसिभदं सुद्धं गेयाउयं अकुडिलं अणत्तरं सव्वदुक्ख• पावाणविओसमणं। तस्स इमा पंच भावणाओ चरिमस्स वयस्स होंति परिग्गहवेरमणरक्खणट्टयाए-पढमं सोइदिएण सोच्चा सद्दाई मणुण्णभद्दगाई, कि ते ? वरमरयमुइंगपणवदुरकच्छभिवीणावि-पंचीवल्लयिवद्धीसक सुघोसणंदिसूसरपरिवाइणि-वंस-तूणगपव्वग-तंती-तलताल-तुडियणिग्घोसगीयवाइयाई णडणट्टग. जल्लमल्लमुढिगवेलंबग-कहग-पवगलासग आइक्खगलंखमंखतूणइल्लतुंबवीणियतालायरपकरणाणि य बहूणि महुरसरगीयसुस्सराई कंचीमेहलाकलावपत्तरगपहेरगपायजालगघंटियखिखिणिरयणोरुजालियछुड्डियणेउरचलण-मालियकणग. णियलजालमूसणसद्दाणि लीलचंकम्ममाण-णूदीरियाई तरुणीजणहसियमणियक. लरिभियमंजुलाई गुणवयणाणि व बहूणि महुरजणभासियाई अण्णेसु य एवमाइ. एसु सद्देसु मणण्णभद्दएसुण तेसु समणे ण सज्जियव्वंण रज्जियव्वं ण गिज्झियव्वं ण मुज्झियव्वं ण विणिग्घायं आवज्जियव्वं ण लभियव्वं ण तुसियव्वं ण हसि. यव्वं ण सई च मइंच तत्थ कुज्जा, पुणरवि सोइंदिएण सोच्चा सहाई अम. गुण्णपावगाई, कि ते ! अक्कोसफरुसखिसणअवमाणणतज्जणणिन्भंछणदित्त. वयणतासणक्कूजियरुण्णरडियकंदिणिग्घुटरसियकलुणविलवियाई अण्णेसु य एवमाइएसु सद्देसु अमणण्णपाबएसु ण तेसु समणेण रूसियव्वं ण हीलियन्वं ण णिदियध्वं ण खिसियव्वं ण छिदियव्वं ण भिदियध्वं ण वहेयव्वं ण दुगुंछाव. त्तियाए लब्भा उप्पाएउं,एवं सोइंदियभावणाभाविओ भवइ अंतरप्पा मणण्णा.

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