Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1409
________________ 1396 अंग-पविट सुत्ताणि पउंजियव्वो, विणओवि तवो तवोवि धम्मो तम्हा विणओ पउंजियव्वो गहसु साहुसु तवस्सीसु य, एवं विणएण भाविओ भवइ अंतरप्पा णिच्चं अहिगरणं. करणकाराबगावकम्मविरए दत्तमणण्णाय उग्गहरुई / एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होइ सुपणिहियं एवं जाव आघवियं सुदेसियं पसत्थं तइयं संवरदारं समत्तंतिबेमि // 26 // // तइयं अज्झयणं समत्तं / / चउत्थ अज्झयणं जंबू ! एत्तो य बंभचेरं उत्तमतवणियमणाणदंसणचरित्तसम्मत्त. विणयमूलं यमणियमगुणप्पहाणजत्तं हिमवंतमहंततेयमंतं पसत्थगंभीरथिमि. यमझं अज्जवसाहुजणाचरियं मोकाव मग्गं विसुद्धसिद्धिगइणिलयं सासयमव्वाबाहमपुणभवं पसत्थं सोमं सुभं सिवमयलमक्खयकरं जइवरसारक्खियं सुचरियं सुभासियं णवरि मणिवरेहिं . महापुरिमधीरसूरधम्मिय. धिइमंताण य सया विसुद्धं सव्वं भव्वजणाणचिण्णं णिस्संकियं णिभयं णित्तसं णिरायासं णिरुवलेवं णिवुइघरं णियमणिप्पकपं तवसंजममूलदलियणेम्म पंचमहव्वयसुरक्खियं समिइगत्तं झाणवरकवाडसुकयमज्झप्पदिण्णफलिह संण. द्धोच्छइयदुग्गइपहं सुगइपहदेसगं च लोगत्तमं च वयमिणं पउमसरतलागपालि. भूयं महासगडअरगतुंबभूयं महाबिडिमरुक्खक्खंधभूयं महाणगरपागारकवाड. फलिहभयं रज्जपिणिद्धो व इंदकेऊ विसद्धणेगगुणसंपिणद्धं जमि य भग्गंमि होइ सहसा सव्वं सभग्गमथियचण्णियकुसल्लियंपल्लट्टपडियखंडियपरिसडिय. विणासियं विणयसीलतर्वाणयमगणसमहं तं बंभं भगवंतं गहगणणक्खत्त. तारगाणं वा जहा उडुवई मणिमत्तसिलप्पबालरत्तरयणागराणं च जहा समहो वेरुलिओ चेव जहा मणीणं जहा मउडो चेव भसणाणं वत्थाणं चेव खोमजयलं अरविदं चेव पुप्फजेठं गोसीसं चेव चंदणाणं हिमवंतो चेव ओसहोणं सीतोदा चेव णिण्णगाणं उदहीसु जहा सयं भरमणो रुयगवरे चेव मंडलियपचयाणं पवरे एरावण इव कुंजराणं सीहोव्व जहा मियाणं पवरे पव्वगाणं चेव वेणुदेवे धरणो जहा पण्णगइंदराया कप्पाणं चेव बंभलोए समासु य जहा भवे सुहम्मा ठिइसु लवसत्तमव पवरदाणाणं चेव अभयदाणं किमिरा चेव कंबलाणं संघयणे चेव वज्जरिसहे संठाणे चेव समचउरसे झाणेसु य परम.

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