Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ पण्हावागरणं सु. 2 अ. 1 1389 अणुपालिया भगवई। इमं च पुढविदगअगणिमारुयतरुगणतसथावरसम्वभूयसंज. मदयट्टयाए सुद्ध उठं गवेसियवं अकयमकारियमणाहूयमणुद्दिठं अकीयकडं गवाह य काडिहिं सुपरिसुद्धं दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं ववगयचुयचावियचत्तदेहं च फासुयं च ण णिसज्जकहापओयणक्खासुओव. णीयंति गतिगच्छामंतमलभेसज्जकज्जहेउंण लक्खणप्पायसुमिणजोइसणिमित्त. कहकप्पउत्तं वि डंभणाए णवि रक्खणाए गवि सासणाए णवि डंभणरक्षण सासणाए भिक्खं गवेसियव्वं णवि वंदणाए णवि माणणाए णवि पूयणाए णवि वदणमाणणपूयणाए भिक्खं गवेसियव्वं णवि हीलणाए व णिदणाए णवि गरहणाए णवि होलणदणगरहणाए भिक्खं गवेसियव्वं गवि भेसणाए णवि तज्जणाए णवि तालणाए णवि भेसणतज्जणतालणाए मिक्खं गवेसियव्यं णवि गारवेणं णवि कुहणयाए णवि वणीमयाए णवि गारवकूहणवणीमयाए भिक्खं गवेसियध्वं गवि मित्तयाए णवि पत्थणाए णवि सेवणाए णवि मित्तपत्थणसेवणाए भिक्खं गवेसियव्वं अण्णाए अगढिए अदुढे अदीणे अविमणे अकलुणे अविसाई अपरितंतजोगी जयणघडणकरणचरियविणयगुणजोगसंपउत्ते भिक्खू भिक्खेसणाए णिरए, इमं च गं सव्वजीवरक्खणदयट्ठाए पावयणं भगवया सुक. हियं अत्तहियं पेच्चामावियं आगमेसिमदं सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विउसमणं // 22 // तस्स.इमा पंच मावणाओ पढमस्स वयस्स होति पाणाइवायवेरमणपरिरक्खणट्टयाए पढमं ठाणगमणगणजोगजंजणजगंतर. णिवाइयाए दिठ्ठीए ईरियध्वं कीडपयंगतसथावरदयावरेण णिच्चं पुप्फफल. तयपवालकंवमूलदगमट्टियबीयहरियपरिवज्जिएण संमं, एवं खल सव्वपाणा ण हीलियम्वा ण णिदियव्या ण गरहियव्वा ण हिसियम्वा ण छिदियत्वा ण भिदियव्वा ण वहेयव्वा ण भयं दुक्खं च किंचि लब्भा पावेउं एवं ईरियासमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिटुणिवणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाह / विइयं च मणेण पावएणं पावगं अहम्मियं दारुणं णिस्संसं वह. बंध-परिकिलेसबहुलं भयमरणपरिकिलेससंकिलिलैंण कयावि मणेण पावएणं पावगं किंचिवि झायव्वं एवं मणसमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाह / तइयं च वईए पावियाए पावगं ण किंचिवि भासियव्वं एवं वइसमिइजोगेण भाविओ भवइ
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