Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1403
________________ 1390 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि अंतरप्पा असबलमसंकिलिटुणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसओ संजओ सुसाह / चउत्थं आहारएसणाए सुद्धं उंछं गवेसियत्वं अण्णाए अगढिए अदुसिठे अदीण अकलणे अविसाई अपरितंतजोगी जयणघडणकरणचरियविणयगणजोगसंपओगजुत्ते भिक्ख भिक्खेसणाए जत्ते समदाणेऊण भिक्खचरियं उछं घेत्तण आगओ गुरुजणस्स पास गमणागमणाइयारे पडिक्कमणपडिक्कते आलोयणदायणं च दाऊण गुरुजणस्स गुरुसंदिटुस्स वा जहोवएस णिरइयारं च अप्पमत्तो, पुणरवि असणाए पयओ पडिक्कमित्ता पसंते आसीणसुहणिसणे महुसमेत्तं च झाणसुह. जागणाणसज्झायगोवियमणे धम्ममणे अविमणे सुहमणे अविग्गहमणे समाहिय. मणे सद्धासंवेगणिज्जरमण पवयणवच्छल्लभावियमणे उठेऊण य पहतुठे जहारायणियं णिमंतइत्ता य साहवे भावओ य विइण्णे य गुरुजणेणं उपविटठे संपमज्जिऊण ससीसं कायं तहा करयलं अमुच्छिए अगिद्धे अर्गाढए अगरहिए अणज्झोववण्ण अणाइले अलुद्ध अणत्तट्टिए असुरसुरं अचवचवं अदुयमविलंबियं अपरिसाडि आलोयभायण जयं पयत्तेण ववगयसंजोगणिगालं च विगयधमं अक्खोवंजणवणाणलेवणभयं संजमजायामायाणिमित्तं संजममारवहणयाए भुजेज्जा पाणधारणट्टयाए संजएण समियं एवं आहारसमिइजोगेणं भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिटुणिवणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। पंचम आयाणणिक्खेवणसमिई पीढफलगसिज्जासंथारगवत्थपत्तकबलदंडगरय. हरणचोलपट्टगमहपोत्तियपायपुंछणाई एयपि संजमस्स उवबहणट्टयाए वायात. वदसमसगसीयपरिरक्खणट्टयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियध्वं संजमेणं णिच्चं पडिलेहणपप्फोडणपमज्जणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खियत्वं च गिण्हियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं एवं आयाणभंडणिखे. वणासमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिट्ठणिवणचरित्तमाव. णाए अहिंसए संजए सुसाहू / एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणि. हियं इमेहि पंचहिवि कारणेहि मणवयणकायपरिरक्खिएहि णिच्चं आमरणंतं च एस जोगो यन्वो धिइमया मइपया अणासवो अकलसो अच्छिद्दोअपरिस्सावी. असंकिलिट्ठो सुद्धो सवजिणमणण्णाओ,एवं पढमं संवरदारं फासियं पालियं. सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं आणाए अणपालियं भवइ, एवं णायमणिणा भग. वया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं पढभं संवरदारं समत्त तिबेमि // 23 // ॥पढमं अज्झयणं समत्तो।।

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