Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 1399
________________ 1386 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि अमच्चा एए अण्णे य एवमाई परिग्गहं संचिणंति अणतं असरणं दुरंतं अधुव. मणिच्चं असासयं पावकम्मणेम्म अवकिरियन्वं विणासमूलं बहबंधपरिकिलेस. बहुलं अगंतसंकिलेसकारणं, ते तं धणकणगरयणणिचयं पिडिता चेव लोभत्था संसारं अइवयंति सव्वदुक्खसंणिलयणं, परिग्गहस्सेव य अढाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलाओ य बावरि सुणिपुणाओ लेहाइयाओ सउणरुयावसा. णाओगणियप्पहाणाओ-चउटुिं च महिलागणे रइजणणे सिप्पसेवं असिमसि. किसिवाणिज्जं ववहारं अत्थसत्थईसत्थच्छरुप्पगयं विविहाओ य जोगजंजणाओ अण्णेसु एवमाइएसु बहुसु कारणसएसु जावज्जीवं णडिज्जए संचिणंति मंदबद्धी परिग्गहस्सेव य अट्टाए करंति पाणाण-बहकरणं अलियणियडिसाइसंपओगे परदव्व-अभिज्जा सपरदारअभिगमणासेवणाए आयासविसूरणं कलह भंडणवेराणि य अवमाणणविमाणणाओ इच्छामहिच्छप्पिवाससययतिसिया तण्हगेहिलोभघत्था अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोमे अकित्त. णिज्जे परिग्गहे चेव होंति णियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाया सण्णा य कामगुण-अण्हगा य इंदियलेसाओ सयणसंपओगा सचित्ताचित्तमीसगाई दवाई अणंतकाई इच्छंति परिघेत्तुं सदेवमणयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहि मणिओ णस्थि एरिसो पासो पडिबंधो अस्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए // 19 // परलोगम्मि य गट्ठा तमं पविट्ठा महयामोहमोहियमई तिमिसंधयारे तसथावरसुहुमबायरेसु पज्जत्तमपज्जत्तंग एवं जाव परियटुंति दीहमद्धं जीवा लोभवससंणिविट्ठा / एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महन्मओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहि मच्चाइ ण य अवेयइत्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति, एवमाहंसु णायकुलगंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधेज्जो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं / एसो सो परिग्गहो पंचमो उणियमा जाणामणिकणगरयणमहरिह एवं जाव इमस्स मोक्खवरमोत्तिमग्गस्स फलिहभयो चरिमं अधम्मदारं समत्तं / एएहि पंचहि असंवरेहिं रयमादिणित्त अणुसमयं / चउविहगइपेरंतं अणपरियट्टंति संसारं // 1 // सव्वगई पक्खंदे काहिति अर्थतए अकयपुण्णा / जे य ण सुगंति धम्मं सोऊण य जे पमायंति // 2 // अणसिपि बहुविहं मिच्छादिठीय जे जरा अहम्मा। बद्धणिकाइयकम्मा सुर्णेति धम्मं ग य करेंति // 3 // किं सक्का काउं जे जं

Loading...

Page Navigation
1 ... 1397 1398 1399 1400 1401 1402 1403 1404 1405 1406 1407 1408 1409 1410 1411 1412 1413 1414 1415 1416 1417 1418 1419 1420 1421 1422 1423 1424 1425 1426 1427 1428 1429 1430 1431 1432 1433 1434 1435 1436 1437 1438 1439 1440 1441 1442 1443 1444 1445 1446 1447 1448 1449 1450 1451 1452 1453 1454 1455 1456 1457 1458 1459 1460 1461 1462 1463 1464 1465 1466 1467 1468 1469 1470 1471 1472 1473 1474 1475 1476