Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1386
________________ पण्हावागरणं सु. 1 अ. 3 1373 संकर परधणं महंता / अवरे पाइकच्चारसंघा सेणावइ-चोरवंद-पागड्डिका य अडवीदेसदुग्गवासी कालहरितरत्तपीतसुविकल्लअगसचिध-पट्टबद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कज्जे रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाउलाकुलविओ. यपोतकल कलेंतकलियं पायालसहस्सवायवसवेगसलिलउद्धम्ममाणदगरयरयंधकारं वरफेणपउरधवलपुलंपुलसमट्टियट्टहासंमारयविच्छभमाणपाणियजलमालप्पीलहुलियं अवि य समंतओ खुमियललियखोखभमाणपक्खलियचलियविउलजलचक्क. बालमहाणईवेगतुरिय-आपूरमाणगंभीरविउलआवत्तचवलमममाणगुप्पमाणच्छलंतपच्चोणियत्तपाणियपधावियखरफरुसपयंडवाउलियसलिलफुटुंतवीइकल्लोल. संकुलं महामगर मच्छकच्छभोहार-गाहतिमिसंसुमार-सावयसमाहय-समुद्धायमा. णकपूरघोरपड़रं कायरजहिययकंपणं घोरमारसंतं महन्मयं भयंकर पइभयं उत्तासणगं अणोरपारं आगासं चेव गिरवलंबं उप्पाइयपवणधणियणोल्लियउव. रुवरितरंगदरियअइवेगवेगचक्खुपहमुच्छरंतंकच्छइ-गंभीर-विउलगज्जिय-गुंजिय. णिग्घायगरुयणिवडियसुदीहणीहारिदूरसुच्चंतगंभीरधुगधुगंतसई पडिपहरुमं. तजक्ख रक्ख सकुहंडपिसायरुसियतज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं बहुप्पाइयभयं विर. चितबलिहोमधूवउवचारदिण्णरुधिरच्चणाकरणपयतजोगपयवचरियं परियतं. जगंतकालकप्पोवमं दुरंतं महाणईणईवईमहाभीमदरिसणिज्जं दुरणच्चरं विसमप्पवेसं दुक्खुत्तारं दुरासयं लवणसलिलपुण्णं असियसियसमूसियहि दच्छ (हत्थ)तरकेहि वाहणेहि अइवइत्ता समद्दमझे हणंति गंतूण जणस्स. पोते परदव्वहरा परा णिरणुकंपा जिरवयक्खा गामागरणगरखेडकब्बडमडंब. दोणमहपट्टणासमणिगमजणवए य धणसमिद्धे हणंति थिरहिययछिण्णलज्जा बंदिग्गहगोग्गहे य गेहति दारुणमई णिक्किवा णियं हणंति छिदंति गेहसंधि णिक्खित्ताणि य हरंति धणधण्णदध्वजायाणि जणवयकुलाणं णिग्घिणमई परस्स दव्वाहि जे अविरया / तहेव केई अदिण्णादाणं गवेसमाणा कालाकालेसु संचरंता चियकापज्जलियसरसदरदडकयकलेवरे रुहिरलित्तवयणअखयखाइय. पोयडाइणिभमतम(य)यंकर जंबयक्खिक्खियंते घूयकयघोरसद्दे वेयालट्ठियणिसुद्धकहकह्यिपहसियबोहणकणिरभिराभे अइदुन्भिगंधबीभच्छदरिसणिज्जे सुसा. णवणसुण्णघरलेणअंतरावणगिरिकंदरविसमसावयसमाकुलासु वसहीसु किलिस्संता सीयातवसोसियसरीरा दड्ढच्छवी गिरयतिरियभवसंकडदुक्खसंभारवेयणि.

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