Book Title: Angpavittha  Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 1389
________________ 1376 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि खाइयाए छूढा तत्थ य वगसुणगसियालकोलमज्जारवंदसंदंसगतुंडपक्खिगण. विविहमहसयलविलत्तगत्ता कविहंगा के किमिणो य कुहियदेहा अणि?. वयहिं सप्पमाणा सुट्ठ कयं जं मउत्ति पावो तुठेणं जण हम्ममाणा लज्जा वणगा य होंति सयणस्सवि य दोहकालं मया संता / पुणो परलोगसमावण्णा णरए गच्छति णिरभिरामे अंगारपलित्तककप्पअच्चत्थसीयवेयणअस्साउदिषण. सययदुक्खसयसमभिद्दुए तओवि उव्वट्टिया समाणा पुणोवि पवज्जति तिरियजोणि तहिपि णिरयोवमं अणहवंति वेयणं, ते अणंतकालेण जइ णाम कहि. पि मणयभावं लभंति णेहि णिरयगइगमणतिरियमवसयसहस्सपरियहि तवि य भवंतऽणारिया णीचकुलसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगवज्झा तिरिवख. भूया य अकुसला कामभोगतिसिया हि णिबंधति णिरयवत्तणि भवप्पवंचकरण. पणोल्लि पुणोवि संसारावत्तणेममूले धम्मसुइविवज्जिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुइपवण्णा य होंति एगंतवंडरुइणो वेढेता कोसिकारकोडोव्व अप्पगं अट्ठकम्म. तंतुघणबधणेणं / एवं णरगतिरियणरअमरगमणपेरंतचक्कवालं जम्मजरामरण. करणगम्भीरदुक्खपखुभियपउरसलिलं संजोगवियोगवीचीचिता पसंगपसरियवहबंधमहल्ल-विपुल कल्लोल-कलणविलवियलोभकलकलितबोलबहुलं अवमाणण. फेणं तिखिसणपुलंपुलप्पभूयरोगवेयणपरामवविणिवायफरुसधरिसणसमावडियकठिणकम्मपत्थरतरंगरंगंतणिच्चमच्चभयतोयपळं कसायपायालसंकुलं भवसयसहस्सजलसंचयं अणंतं उव्वेयणयं अणोरपारं महन्मयं भयंकर पइभयं अपरिमियमहिच्छकलसमइवाउवेगउद्धम्ममाणसापिवासपायालकामरइरागदो. सबंधणबहुविहसंकप्पविपुलदगरयरयंधकारं मोहमहावत्तभोगमममाणगप्पमा. गुच्छलतबहुगम्भवासपच्चोणियत्तपाणियं पहावियवसणसमावण्णरुण्णचंडमारुय. समाहयामणष्णवीचीवाकुलियभग्गफुट्टतणिटुकल्लोलसंकुलजलं पमायबहुचंडदुट्ठसावयसमाहयउद्घायमाणगपूरघोरविद्धसणत्थबहुलं अण्णाणभमंतमच्छपरिहत्थं अणिहुतिदियमहामगरतुरियचरियखोखुखममाणसंतावणिच्चयचलंत चवलचंचल. अत्ताणाऽसरणपुवकयकम्मसंचयोदिण्णवज्जवेइज्जमाणदुहसयविपाकघण्णंतजल. समूहं इड्डिरससायगारवोहारगहियकम्मपडिबद्धसत्तकड्डिज्जमाणणिरयतलहुत्त. सण्णविसण्णबहुलअरइरइभयविसायसोगमिच्छत्तसेलसंकडअणाइसंताणकम्मबंध. णकिलेसचिक्खिल्लसुदुत्तारं अमरणरतिरियणिरयगइगमणकुडिलपरियत्तविपुल.

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