Book Title: Angpavittha Suttani
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________ 1370 अंग-पविट्ट सुत्ताणि लेवणपईवजलि-उज्जलसुगंधिधवावकारपुष्फफलसमिद्धे पायच्छित्ते करेह पाणाइ. वायकरणेणं बहुविहेणं विवरीउप्पायदुम्सुमिणपावस उणअसोमगहचरियअमंगल. णिमित्तपडिधाय हेउं वित्तिच्छेयं करेह मा देह किंचि दाणं सुठ्ठ हओ सुठ्ठ हओ सुठ्ठ छिपणो भिण्णोत्ति उबदिसंता एवंविहं करेंति अलियं मगेण वायाए कम्मणा य अकुसला अणज्जा अलियाणा अलियधम्मणिरया अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्टा अलियं करेत्तु होति य बहुप्पयारं // 7 // तस्म य अलियस्त फल. विवागं अयाणमाणा वडढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दोहकालं बहदुक्ख संकडं णरयतिरियजोणि तेण य अलिएण समणबद्धा आइद्धा पुणब्भबंधकारे भमंति भीमे दुग्गइवसहिमवगया / ते य दीतिह दुग्गया दुरंता परवसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिया फुडियच्छविबीमच्छविवण्णा ख रफल्सविरत्त. ज्झामज्झसिरा णिच्छाया लल्लविफलवाया असक्कयमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीणभिण्णघोसा बिहिसा जडबहिरंधया य मम्मणा अतविकयकरणा णीया णीयजणगिसेविणो लोगगरहणिज्जा भिच्चा अमरिसजणस्स पेस्मा दुम्मेहा लोकवेदअझप्पस पगलुइवज्जिया परा धम्मबुद्धिवियला अलिएण य तेणं पडज्झमाणा असंतरण य अवमाणणपट्टिमंसाहि क्खेवपिसुणभेयणगुरुबंधयसयणमित्तवक्खारणाइयाई अब्भक्खाणाई बहुविहाई पावेंति समणोरमाइं हिययमणदुमकाई जावज्जीवं दुरूद्धराई अणिटुख रफरुसवयण-तज्जण-णिभच्छण-दीण वयणविमणा कुभोयणा कुवाससा कुवसहीसु किलिस्संता णेव सुहं णेब णिवुई उबलभंति अच्चतविउलदुक्ख सयसंपलित्ता / एसो सो अलिययणस्स फलविवाओ इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहि मच्चइ, ण य अवेयइत्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति / एवमासु णायकुलगंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधेज्जो कहेसी य अलियवयणस्स फलविवागं एयं तं बिईयंपि अलिय. वयणं लहुसगलहुचवलभणियं भयंकरं दुहकर अयसकर वेरकरगं अरइरइरागदोसमणकिलेसवियरणं अलियणियडिसाइजोगबहुलं णीयजणणिसेवियं णिस्संसं अप्पच्चयकारगं परमसाहुगरहणिज्ज परपीलाकारगं परमकण्हलेससहियं दुग्गल. विणिवायवडणं (भव) पुणब्भवकरं चिरपरिचियनणुगयं दुरतं / बिइयं अधम्मदारं समत्तं // 8 // बीयं अज्झयणं समत्तं / /
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