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अनेकान्त-58/1-2
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ऐसा प्रतीत होता है कि बाद को जब बौद्ध अनुश्रुति संकलित हुई उनके संकलन कर्ताओं ने हिन्दु अनुश्रुति के प्रसिद्ध राज्यों से जिनसे भी किसी समय बौद्धधर्म अथवा बौद्ध कथानकों का थोड़ा बहुत संबंध पाया, उन सब प्रदेशों से यह सोलह महाजन पद धड़ लिये।
इसके विपरीत जैन अनुश्रुति में, जो उक्त दोनों अनुश्रुतियों से कम प्राचीन नहीं वरन किन्हीं अंशों में अधिक प्राचीन है, शुद्ध भारतीय अनुश्रुति है और जिसका संकलन भी उन दोनों से पहिले होना प्रारम्भ हो गया था, भगवान महावीर के पूर्व के सोलह राज्य निम्नप्रकार वर्णन किये हैं
अङ्ग, बङ्ग, मगह (मगध), मलय (चेदी), मालव, अच्छ (अश्मक), वच्छ (वत्स), कच्छ (गुजरात काठियावाड़), पाढ़ (पांड्य), लाढ़ (राधा), आवाह (पश्मिोत्तर प्रान्त) सम्भुत्तर, वज्जि, मल्ल, काशी, कोशल'।
प्रत्यक्ष ही जैन अनुश्रुति के इन महावीर-कालीन प्रसिद्ध सोलह राज्यों में प्रायः समस्त भारतवर्ष के हिन्दुकुश से कुमारी अन्तरीप, तथा बंगाल से काठियावाड़ तक के सर्व ही आर्य अनार्य राज्य आ गये, जिनका कि अस्तित्व उक्त समय के इतिहास में स्पष्ट मिलता है। __अङ्ग की राजधानी चम्पा थी। यह राज्य बङ्गाल और मगध के बीच में स्थित था इसके राज्य वंश तथा जनता में जैनधर्म की प्रवृत्ति अन्त तक बनी रही थी। राजधानी चम्पापुरी 12वें जैन तीर्थकर वासुपूज्य की जन्मभूमि थी। ई. पू. छठी शताब्दी के मध्य में मगध के श्रेणिक (बिम्बसार) ने अङ्ग को विजय कर अपने राज्य में मिला लिया था।
बगदेश में उस समय नाग, यक्ष आदि प्राचीन जातियों के छोटे 2 राज्य एक संघ में गुंथे हुए थे, किन्तु इनकी स्थिति स्वतंत्र रहते हुए भी गौण ही रही।
मगह अथवा मगध बाद को सर्व प्रसिद्ध एवं सर्वोपरि. राज्य हो गया। राजधानी पञ्चशैलपुर (गिरिब्रज अथवा राजगृही) थी। काशी राज्य के ह्रास के साथ साथ इस देश में नाग क्षत्रियों की एक शाखा शिशुनाग वंश की स्थापना