Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 245
________________ 110 अनेकान्त 58/3-4 मतानुसार यह तारीख 10 मार्च 907 की है। सच बात तो यह है अभी तक यह विषय अनिर्णीत ही है। भगवान् बाहुबली क्यों पूज्य हुए इसका कारण स्पष्ट ही है। इस अवसर्पिणी काल में सबसे पहले कामदेव तो ये हैं ही, परन्तु मोक्षगामी जीवों में भी ये सबसे पहले हैं। भगवान् ऋषभदेव ने यद्यपि इनसे पहले दीक्षा ली थी, परन्तु उनसे भी पहले भगवान् बाहुबली ने मोक्ष प्राप्त किया, इसी कारण मोक्षमार्ग के प्रणेता के रूप में वे सर्वत्र पूज्य हुए। ___ यह मूर्ति बिलकुल दिगम्बर नग्नावस्था में है। चट्टान सीधी खड़ी है और उत्तरोनमुख है। शरीर का भारी बोझ सँभालने के लिये टांगों के आगे-पीछे की शिला को बमीठों के रूप में छोड़ दिया गया है। इसके सिवाय इस मूर्ति का कोई आधार नहीं है। इन दोनों ओर के बमीठों से माधवी लता पहले टांगों से और उसके बाद सुदीर्घ भुजाओं से लिपटती हुई ऊपर तक चली गई है। ऐसी सुन्दर विशाल मूर्ति उस समय में बनाई गई जबकि वैज्ञानिक साधनों का यहां किसी को पता तक न था, इसलिये उन कारीगरों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सभी अंग ऐसे तो नपे-तुले बने हैं कि कोई भी विशेषज्ञ इसमें कोई दोष नहीं निकाल सकता। बमीठों पर चरणों के दोनों ओर मराठी, प्राचीन कन्नड़ और तमिल लिपि में बड़े-बड़े शिलालेख हैं जिनमें लिखा है: श्री चावुणराजे करवियले (श्री चामुण्डराज ने बनवाई) और श्री गंगराजे सुत्ताले करवियल (गंगराज ने परकोटा बनवाया)। मराठी भाषा के इतिहास में ये दोनों वाक्य गद्य के सबसे प्राचीन नमूने माने गये हैं। ___ यह मूर्ति होयसल शिल्पकला की अन्य मूर्तियों के समान न तो आभूषणों से लदी है और न मिश्र या ग्रीक देवताओं की तरह ठसक के साथ बैठी ही है, फिर भी शोभा और शालीनता की दृष्टि से संसार की सभी मूर्तियों से बढ़कर है। खुद कारीगरों को भी कल्पना न थी कि जिस

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286