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अनेकान्त 58/3-4
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श्री चामुण्डराय के काल पर भी विचार करना आवश्यक है। ब्रह्मदेव स्तम्भ पर ई. सन् 974 का एक अभिलेख पाया जाता है और 1184 ई. में गोम्मटेश्वर की मूर्ति के पास में ही द्वारपालकों की बायीं ओर प्राप्त लेख से स्पष्ट है कि गोम्मट स्वामी की पोदनपुर में भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित करायी गई प्रतिमा के विषय में सुना तो विन्ध्यगिरि पर वर्तमान विद्यमान मूर्ति का निर्माण कराया था। इससे स्पष्ट है कि 1184 ई. से पूर्व चामुण्डराय की प्रसिद्धि हो चुकी थी। इन्होंने “त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण" अपरनाम “चामुण्डरायपुराण' की कन्नड़ भाषा में रचना की थी, जिसमें अनेक आचार्यो द्वारा रचित संस्कृत प्राकृत भाषा के श्लोक और गाथाओं को उद्धृत किया है। आर्यनन्दि, पुष्पदन्त, भूतवलि, यतिवृषभ, उच्चारणाचार्य, माघनन्दि शामकुण्ड तेम्बुलूराचार्य, एलाचार्य, गृद्धपिच्छाचार्य, सिद्धसेन, समन्तभद्र पूज्यपाद, वीरसेन, गुणभद्र, धर्मसेन, कुमारसेन, नागसेन, चन्द्रसेन, अजितसेन आदि आचार्यो का उल्लेख भी किया है, जिससे स्पप्ट है कि ये मूल परम्परा मान्य हैं, इनके द्वारा चामुण्डरायपुराण शक संवत् 900 ई. सन् 978 में पूर्ण किया गया और 981 ई. सन् में बाहुवली स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी थी। इससे निश्चित है कि इनका समय दसवीं शती है।
श्री चामुण्डराय ने कन्नड़ और संस्कृत दोनों भाषाओं में ग्रन्थों की रचना की है। कन्नड़ भाषा में लिखित त्रिषष्टिलक्षणपुराण है और संस्कृत में चारित्रसार है। दोनों ही ग्रन्थ वर्ण्य विषय की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण है। त्रिपप्टिलक्षणपुराण में 63 शलाकापुरुषों के जीवन चरित्र को विस्तार के साथ वर्णित किया गया है। यह जातक कथा की शैली में तैयार किया गया है, बहुत महत्त्वपूर्ण है।
चारित्रसार श्रावकों और श्रमणों के आचार का वर्णन करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे चार प्रकरणों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम प्रकरण में सम्यक्त्व और पंचाणुव्रतों का वर्णन है। द्वितीय प्रकरण में सप्तशीलों का विस्तृत विवेचन है। तृतीय प्रकरण में षोडश भावनाओं