Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 269
________________ 134 अनेकान्त 58/3-4 एल.के. श्रीनिवासन ने चामुण्डराय की प्रसिद्धि के कारण को बताते हुए लिखा है- “गंग नरेश मारसिंह द्वितीय और राचमल्ल चतुर्थ का महामत्री चामुण्डराय उस काल का सर्वाधिक प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष था। उसके समर्पण का प्रमाण एक प्राकृतिक चट्टान में उसके द्वारा बनवाई गई उस सर्वोच्च प्रतिमा से मिलता है, जिसमें उसनं भक्ति की शक्ति को सृष्टि में एकाकार कर दिया है, वहाँ के छह अभिलेख श्रवणवेलगोला के साथ चामुण्डराय के सम्बन्धों को रेखांकित करते हैं। विन्ध्यगिरि पर गोम्मटेश्वर बाहुबली के निर्माण ने उसे इतिहास में प्रसिद्ध कर दिया।"13 चामुण्डराय ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये उनसे उनके गुरू श्री नेमिचन्द्राचार्य अत्यधिक प्रसन्न थे, उन्होंने अपने शिष्य को ज्ञान कराने हेतु गोम्मटसार जैसे महान ग्रन्थ की रचना की थी। जीवकाण्ड की मन्द प्रबोधिनी टीका की उत्थानिका में अभयचन्द्र सूरि ने लिखा है गंगवश के ललामभूत श्रीमद्राचमल्लदेव के महामात्य पद पर विराजमान और रणांगमल्ल, गुणरत्नभूपण सम्यक्त्वरत्ननिलय आदि विविध सार्थक नामधारी श्री चामण्डराय के प्रश्न के अनुरूप जीवस्थान नामक प्रथम खण्ड के अर्थसंग्रह करने के लिए गोम्मटसार नाम वाले पचसंग्रह शास्त्र का प्रारम्भ करते हुए मैं नेमिचन्द्र मंगलपूर्वक गाथासूत्र कहता हूँ। अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व के फलस्वरूप वे अनेक अलंकरणों से मण्डित थे। श्री चामुण्डराय समरधुरन्धर, वीरमार्तण्ड, रणरंगसिंह, वेरिकुलकालदण्ड, राजवाससिवर, समरप्रचण्ड, समरपरशुराम, प्रतिपक्षशत्रु, प्रतिपक्षराक्षस, क्रुडामिक आदि योद्धाओं को पराजित करने से प्राप्त भुजविक्रम आदि उपाधियाँ इनकी भूषण थीं। नैतिक दृष्टि से सम्यक्त्वरत्नाकर शौचाभरण, सत्य युधिष्ठिर और सुभटचूडामणि उपाधियो से भी अलंकृत थे। इतने महान् थे कि उनके गौरव का जितना व्याख्यान किया जाय, वह कम है। उनके कार्यो का भी वर्णन करने में कलम अक्षम है।

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