Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 267
________________ 132 अनेकान्त 58/3-4 __ अर्थात् गोम्मट शिखर पर चामुण्डराय राजा ने जिनमन्दिर बनवाया, उसमें एक हस्त प्रमाण इन्द्रनीलमणिमय नेमिनाथ तीर्थकर देव का प्रतिबिम्ब विराजमान किया तथा भारत के दक्षिण प्रान्त में श्रवणबेलगोला के पर्वत पर निर्मापित बाहुबली स्वामी की प्रतिमा विराजमान की, वह बिम्ब तथा गोम्मटसार संग्रह ग्रन्थ जयवन्त हो। चामुण्डराय ने बाहुबली जिनबिम्ब के अतिरिक्त ब्रह्मदेव नामक एक स्तम्भ भी बनवाया था, जिस पर उनकी प्रशस्ति अंकित है। इन्होंने चन्द्रगिरि पहाड़ी पर एक मन्दिर निर्माण कराया था, जो चामुण्डराय वसति नाम से विख्यात है। बाहुबली की प्रतिमा के लिए गोम्मट नाम का प्रयोग सबसे प्राचीन 1158 ई. का है। वहाँ राचमल्ल नरेश के मंत्री का नाम 'राय' लिखा है न कि चामुण्डराय या गोम्मटराय लिखा है। जस्टिस मांगीलाल जैन चामुण्डराय का अपर नाम गोम्मटराय नहीं स्वीकार करते हैं और न सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमीचन्द्र के समकालीन मानते हैं। साथ में चामुण्डराय के द्वारा गोम्मटेश्वर प्रतिमा निर्माण का भी निषेध करते है, उन्होंने लिखा है- “आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने गुरुभाई शिष्य व बालसखा कहे जाने वाले चामुण्डराय का नाम भूलकर भी नहीं लिया और न ही चामुण्डराय ने अपने ग्रन्थों में अपने आपको गोम्मटराय ही लिखा है। यह भी कहा जाता है कि स्वयं चामुण्डराय ने अपने पुराण में आचार्य नेमिचन्द्र का भी जिक्र नहीं किया है। अतः निष्कर्ष तो यही निकलता है कि न चामुण्डराय गोम्मटराय हैं और न चामुण्डराय नेमिचन्द्रचार्य के समकालीन । यदि मूर्ति चामुण्डराय ने बनाई होती, तो चामुण्डराय पुराण (979 ए.डी.) में वे इसके बनाने का न सही बनाने के संकल्प का तो अवश्य ही जिक्र करते। इस कृति में उन्होंने अपने ब्रह्मक्षत्रिय होने का तथा अपने गुरू अजितसेन का व अपनी उपाधियों का तो उल्लेख किया है, किन्तु अपने सखा गुरुभाई नेमिचन्द्र का उल्लेख नहीं किया है यदि मूर्ति 981 में प्रतिष्ठित हुई होती, चामुण्डराय पुराण' लिखते समय अथवा समाप्त करते समय इसका निर्माण चल रहा होगा। आश्चर्य यह है कि इस

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