Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 265
________________ 130 अनेकान्त 58/3-4 वर्तमान में गोम्मट इस नवीन नाम से भूषित है। इत्यादि वृतान्त को सुनकर राजा राचमल्ल और चामुण्ड मंत्री दोनों अत्यन्त हर्षित हुए। चामुण्ड ने उस बिम्ब को वहीं से भाव नमस्कार किया। अनन्तर घर जाकर अपनी माता को बताया। माता ने उस बिम्ब के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। श्री चामुण्ड ने देशीयगण में प्रधान श्री अजितसेन मुनि को नमस्कार करके बाहुबली स्वामी के बिम्ब के समाचार कहे और उनके समक्ष इस प्रकार की प्रतिज्ञा धारण की कि “मैं जब तक श्री बाहुबली की प्रतिमा का दर्शन नहीं करूँगा, तब तक दूध नहीं पीऊँगा।” अनन्तर सम्राट के सामने अपनी यात्रा का उद्देश्य निवेदित किया। सम्राट से आज्ञा लेकर सिद्धान्ताम्भोधिचन्द्र, सिद्धान्तामृतसागर आदि गुणों के धारक श्री नेमिचन्द्र स्वामी आचार्य एवं अनेक विद्वानों के समागम युक्त चतुरंग सेना सहित अपनी माता को भी साथ लेकर गोम्मट स्वामी श्री बाहुबली के बिम्ब दर्शन के लिए उत्तर दिशा की ओर श्री चामुण्ड ने प्रयाण किया। गमन करते हुए विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच कर जिनमन्दिर के दर्शन किए, वहीं उसी मन्दिर के मण्डप में सो गए। रात्रि में कूष्माण्डिनी देवी ने आचार्य श्री नेमिचन्द्र, चामुण्ड और चामुण्ड की माता को स्वप्न में कहा, “पादेनपुर जाने का मार्ग कठिन है। इस पर्वत में रावण द्वारा स्थापित श्री बाहुबली का प्रतिबिम्ब है, वह धनुष पर सुवर्ण के बाण चढ़ाकर पर्वत को भेदने पर प्रकट होगा" प्रातः काल श्री चामुण्ड ने श्री नेमिचन्द्र स्वामी को स्वप्न का वृतान्त सुनाया। उन्होंने स्वप्न के अनुकूल प्रवृत्ति करने को कहा! तदनुसार श्री चामुण्ड ने स्नान कर आभूषणों से भूषित होकर मुनि के समक्ष दक्षिण दिशा में खड़े होकर धनुष द्वारा सुवर्ण का बाण चलाया, जिससे पर्वत में छिद्र होकर वहाँ परद्विप च ताल समलक्षण पूर्वगात्रो विंशच्छरासन समोन्नतभासमूर्तिः। सन्माधवीव्रततिनागलसत्सुकायः सद्यः प्रसन्न इति बाहुबली बभूव।। __ -बाहु.च. 48 अर्थात् “दशताल सम” लक्षणों से पूर्ण शरीर की धारक और बीस धनुष परिमाण ऊँची श्री बाहुबली की प्रतिमा प्रकट हुई।

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