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वीरवर चामुण्डराय
-डॉ. श्रेयांस कुमार जैन भारत वसुन्धरा पर अनेक सम्राट और मंत्री हुए हैं, जो कुशल प्रशासक के साथ महान् साहित्यकार थे, उन्हीं में वीरमार्तण्ड श्री चामुण्डराय विश्रुत हैं। ब्रह्मक्षत्रियवंशोत्पन्न' चामुण्ड के पिता गंगवंश के राज्याधिकारी थे और माता श्रीमती कालिका देवी धार्मिक महिला थीं। माता-पिता से धार्मिक संस्कार प्राप्त चामुण्ड ने श्री अजितसेन गुरू से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की और कन्नड़ तथा संस्कृत भाषा पारंगत हुए। दिगम्बर जैन साधु से शिक्षा प्राप्त होने से आपने जैन धर्म सिद्धान्त का विशेष ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सिद्धान्तचक्रवर्ती श्री नेमिचन्द्राचार्य से भी शिक्षा ग्रहण कर संस्कृत में ग्रन्थ रचना अधिकार को प्राप्त हो गये थे।
बाहुबलिचरित्र में लिखा है कि द्राविड़देश में एक मथुरा नामक नगरी थी, जो वर्तमान में मडूरा (मदुरै) नाम से प्रसिद्ध है, वहाँ देशीयगण के स्वामी श्री सिंहनन्दी आचार्य के चरणकमल सेवक गंगवंश तिलक श्री राचमल्ल राजा हुए। इनके मुख्य मंत्री श्री चामुण्ड थे, जैसा कि लिखा
तस्यामात्यशिखामणिः सकलवित्सम्यक्त्वचूड़ामणिभव्याम्भोजवियन्मणिः सुजनवन्दितातचूड़ामणिः। ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशक्तिसुमणिः कीत्यौधमुक्तामणिः पादन्यस्तमहीशमस्तकमणिश्चामुण्डभूपोऽग्रणीः।। बाहु.चरित-11
इस कथन के अनुसार श्री चामुण्ड भूप महामंत्री हुए, वह एक दिन राचमल्ल की सभा में विराजमान थे, उस समय किसी सेठ ने आकर प्रणाम करके कहा कि महाराज! उत्तर दिशा में पोदनपुर नगर है, वहाँ पर भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित कायोत्सर्ग मुद्रा में श्री बाहुबली का बिम्ब है, जो