Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
________________
अनेकान्त 58/3-4
127
5. भद्रबाहु ने वैराग्यपूर्वक श्रुतधर आचार्य यशोभद्र के पास वी.नि. 139
(वि.पू. 331) मे मुनिदीक्षा ग्रहण की। गुरू के पास 17 वर्ष तक रहकर उन्होंने
आगमो का गम्भीर अध्ययन किया। 6. भद्रबाहुं च पाईणं (नन्दी स्थविरावली) 7. वंदामि भद्दवाहुं पाईण चरिम सथल सुयनाणिं 8 थेररसणं अज्जभद्दबाहुस्स पाईत सगुत्तस्स इमे चत्तारि अतेवासी
अहावच्चा अभिन्नाया हुत्था ते जहा थेरे गोदासे थेरे अगिदत्ते
थेरे भवदत्ते 4 थेरे सोमदत्ते। 9 शिलालेख संग्रह भा. 1 10. चन्द्रावदातसत्कीर्तिश्चन्द्रवन्मोदकर्तृ (कृन्न) णाम्। ___चन्द्रगुप्ति पस्तत्राऽचकच्चारु गुणोदयः ।। 6 ।। भद्रवाहचरित परि. ।। मउडधरेसु चरियो जिणदिक्ख धरदिचद्दगुत्तो य।
तत्तो मउडधरादुप्पवज व गेहति ।। तिलो प. 4/1481 12. 'नेणल' वत्तिणीए य भद्दवासाभी अच्छति चोद्दस्स पुब्बी। आश्यकचूर्णि भाग-2
पत्राक 187 13. श्रीभद्रस्सर्वतो यो हि भद्रबाहुरिति श्रुत.।
श्रुतकेवलिनाथेषु चरम परमो मुनि ।। श्री चन्द्रप्रकाशोज्ज्वलसान्द्रकीर्ति , श्री चन्द्रगुप्तोऽजनि तस्य शिष्य. । यस्य प्रभावाद्वनदेवताभिगराधित स्वस्य गणो मुनीनाम् ।। शिलालेख न.3
जै शि.सं भा.1 14 बृहत्कथाकोष (भद्रबाहु कथा) 15 अथखनु ..... गुरुपरम्पराणामभ्यागतमहापुरुषसन्ततिसमयद्योतान्वय श्री
भद्रबाहु स्वामिना उज्जयिन्या अप्टांगमहानिमित्त तत्त्वज्ञेन त्रैकाल्यदर्शिना निमित्तेन द्वादशसम्वत्सरकालवैषम्यमुपलभ्यकथिते सर्वसंघ उत्तरपथात् दक्षिणापथं प्रस्थितः ....... कटवप्रनामकोपलक्षिते ......... शिखरिणिजीवितिशेषम् अल्पतरकाल अवुध्याध्वनः सुचकित तप समाधिमाराधयितुमापृच्छय निरवशेषसंघं विसृज्य शिष्येणैकेन पृथुलकास्तीर्णतलासु शिलासु शीतलासु स्वदेह सन्नयस्यागधितवान् ।
उदधृत श्वेताम्बरमत समीक्षान पृ. 161 16. भगवती आराधना 1996 व 1992
Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286