Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 253
________________ 118 अनेकान्त 58/3-4 श्रुतकेवली भद्रबाहु और उनका समाधिमरण -डॉ. श्रेयांस कुमार जैन भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद तीन अर्हत् केवली गौतम, सुधर्म और जम्बूस्वामी ने संघ का नेतृत्व किया। अनन्तर द्वादशांग श्रुत के ज्ञाता विष्णु, नन्दिमित्र अपराजित गोवर्द्धन और भद्रबाहु पांच श्रुतकेवली हुए।' गोवर्द्धनाचार्य के साक्षात् शिष्य प्रभावशाली तेजोमय व्यक्तित्व सम्पन्न श्रुतकेवली भद्रबाहु अप्रतिम प्रतिभावान् थे और इनका व्यक्तित्व सूर्य के समान तेजस्वी था। भद्रबाहु अध्यात्म के सबल प्रतिनिधि श्रुतधारा को अविरल और अखण्डित रूप में श्रुतधर गोवर्द्धनाचार्य से ग्रहण कर उसे सुरक्षित रखने वाले अन्तिम श्रुतकेवली थे, जिन्हें महर्षि कुन्दकुन्द ने अपने गमक गुरू के रूप में स्वीकार किया है।' श्रुतधर भद्रबाहु दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में सम्मानास्पद को प्राप्त हुए हैं। श्वेताम्बर इन्हें यशोभद्र का शिष्य स्वीकार करते हैं।' बृहत्कथाकोषकार ने भद्रबाहु का जन्म पौण्ड्रवर्द्धन राज्य के कोटिकपुर (कोटपुर) ग्राम में बताया है और राज्य पुरोहित सोमशर्मा-सोमश्री के पुत्र कहा है। एक बार गोली के ऊपर गोली चढ़ाते हुए उन्होंने चौदह गोलियां एक दूसरे के ऊपर चढ़ा दी, यह खेल गोवर्द्धनाचार्य ने देखा और अपने निमित्त ज्ञान से जाना कि यह चौदह पूर्व के ज्ञाता होंगे तभी उनके पिता से बालक भद्रबाहु को अपने साथ ले जाने की अनुमति ली और साथ रख कर आगम का अभ्यास करा दिया। दीक्षा ग्रहण कर वह श्रुतधर हो गये। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के 'तित्थोगालिय पइन्ना' आवश्यकचूर्णि, नियुक्ति आदि ग्रन्थों में श्रुतधर भद्रबाहु के कुछ जीवन प्रसंग हैं, किन्तु उनके माता-पिता आदि गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित सामग्री नहीं है। नन्दीसूत्र में इन्हें 'प्राचीन' गोत्रीय कहा है। दश श्रुतस्कन्धनियुक्ति में भी प्राचीन गोत्री कहकर वन्दन किया है।' तित्थोगालिय पइन्ना में इनके श्रेष्ठ शरीर

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286