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अनेकान्त 58/3-4
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रचना के विषय में लिखा है
सत्तमत्तोथिरबाहु जाणुयसीससुपडिच्छिय सुबाहो। नामेण भद्दबाहो अबिही साधम्म सद्दोत्ति ।। 4 ।। सोवियचोद्दस पुची वारस वासाइ जोगपडिवभो।
सुत्तत्येणं निबंधइ अत्यं अज्झयणबंधस्स ।। 715।। योग साधक श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु महासत्व सम्पन्न थे, उनकी भुजाएं प्रलम्बमान सुन्दर सुदृढ़ और सुस्थिर थीं। ये सामर्थ्य सम्पन्न, अनुभव सम्पन्न, श्रुत सम्पन्न अनुपम व्यक्तित्व थे। कल्पसूत्र स्थविरावली में इनके स्थविर गौदास, स्थविर अग्निदत्त, स्थविर भत्तदत्त, स्थविर सोमदत्त, इन चार शिष्यों का उल्लेख है। श्वेताम्बर परम्परा आचार्य भद्रबाहु को श्रुतधर और आगम के रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करती है। उन्होंने छेदसूत्रों की रचना की है। आगम साहित्य में छेदसत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दश श्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प व्यवहार, निशीथ, इन चार छेदसूत्रों की रचना आचार्य भद्रबाहु के द्वारा की गई है। ___ दिगम्बर साहित्य में आचार्य भद्रबाहु का व्यक्तित्व बहुत महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। चन्द्रगिरि के शिलालेख में उनके विषय में लिखा है कि जिसमे समस्त शीलरूपी रत्नसमूह भरे हुए हैं और जो शुद्धि से प्रख्यात है, उस वंश रूपी समुद्र में चन्द्रमा के समान श्री भद्रबाहु स्वामी हुए। समस्त बुद्धिशालियों में श्री भद्रबाहु स्वामी अग्रेसर थे। शुद्ध सिद्ध शासन और सुन्दर प्रबन्ध से शोभा सहित बढ़ी हुई है व्रत की सिद्धि जिनकी तथा कर्मनाशक तपस्या से भरी हुई है कीर्ति ऐसे ऋद्धिधारक श्री भद्रबाहु स्वामी थे। इनकी महिमा का ज्ञान शिलालेख में इस प्रकार किया गया है
वन्यः कथन्नु महिमा भण भद्रबाहोम्मोहो-मल्ल-मदमर्दन वृत्तबाहोः। यच्छिष्यताप्तसुकृतेन स चन्द्रगुप्तःश्शुश्रुष्यतेस्म सुचिरं वन-देवताभिः।। जै.शि.सं.भा.1/पृ. 101