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अनेकान्त 58/3-4
अनुकूल बनाने के लिए विशेष दूत भेजे गए । बाहुबली के अतिरिक्त सम्राट् भरत के शेष अन्य सहोदरों ने पिता के न होने पर बड़ा भाई ही छोटे भाईयों के द्वारा पूज्य होता है, ऐसा मानकर अपने पिताश्री से मार्गदर्शन लेने का निर्णय किया। उन्होंने कैलाश पर्वत पर स्थित जगतवन्दनीय भगवान् ऋषभदेव के पावन चरणों की वन्दना के पश्चात् उनसे निवेदन किया
त्वत्प्रणामानुरक्तानां त्वत्प्रसादाभिकाङ्क्षिणाम् । त्वद्वचः किंकराणां नो यद्वा तद्वाऽस्तु नापरम् ।।
कहा
( आदिपुराण, पर्व 34 / 102 )
अर्थात् आपको प्रणाम करने में तत्पर, हम लोग अन्य किसी की उपासना नहीं करना चाहते।
तीर्थकर ऋषभदेव ने अपने धर्मपरायण पुत्रों का मार्गदर्शन करते हुए
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भंगिना किमु राज्येन जीवितेन चलेन किम् ।
किं च भो यौवनोन्मादैरैश्वर्यबलदूषितैः । । किं च भो विषयास्वादः कोऽप्यनास्वादितोऽस्ति वः ।
स एव पुनरास्वादः किं तेनास्त्याशितंभवः ।। यत्र शस्त्राणि मित्राणि शत्रवः पुत्रबान्धवाः । कलत्रं सर्वभोगीणा धरा राज्यं धिगीदृशम् ।। तदलं स्पर्द्धया दध्वं यूयं धर्ममहातरोः । दयाकुसुममम्लानि यत्तन्मुक्तिफलप्रदम् ।। पराराधनदैन्योनं परैराराध्यमेव यत् । तद्वो महाभिमानानां तपो मानाभिरक्षणम् ।। दीक्षा रक्षा गुणा भृत्या दयेयं प्राणवल्लभा । इति ज्याय स्तपोराज्यमिदं श्लाघ्यपरिच्छदम् । ।
( आदिपुराण, पर्व 34 )