________________
86
अनेकान्त 58/3-4
बनकर तैयार हुई। विशाल नन्दियों की मूर्ति को बैलगाडियों और वाहनो द्वारा देवालय तक ले जाना असम्भव था। नवनिर्मित नन्दी की प्रतिमाएँ मन्दिर तक कैसे पहुंची इसका रोचक विवरण श्री के. वी. अय्यर ने 'शान्तला' में एक स्वप्न-कथा के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया है
"देव, नन्दी-पत्थर के नन्दी चले आ रहे है! वे जीवित हैं! उनका शरीर सोने के समान चमक रहा है। वहाँ जो प्रकाश फैला है, वह नन्दियों के शरीर की कांति ही है। प्रभो, उनकी आंखें क्या हैं, जलते हुए अंगारे है! हम लोगों ने जो कुछ देखा, वही निवेदन कर रहे हैं। महाप्रभो, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यदि यह असत्य हो, तो हम अपने सिर देने के लिए तैयार हैं। कैसा आश्चर्य है। पत्थर के नन्दी चले आ रहे है। भगवान् बाहुबली स्वामी-विराट् शिला-प्रतिमा-स्वयं नन्दियो को चलाते आ रहे हैं! अटारी पर खड़े होकर अपनी आँखों से हमने यह दृश्य देखा है। फौरन ही आपके पास आकर समाचार सुना दिया है। शिला-कृतियाँ जीवित हो उठी हे-यह कैसा अद्भुत काल है। अप्पा जी (नरेश विष्णुवर्धन) ने कहा-'तुम लोग धन्य हो कि सबसे पहले ऐसे दृश्य को देखने का सौभाग्य प्राप्त किया ! जाओ, सबको यह संतोष का समाचार सुनाओ कि जीवित नन्दी पैदल चले आ रहे हैं और भगवान् बाहुवली उन्हे चलाते आ रहे हैं।
जब उपस्थित लोगों को यह मालूम हुआ, तब उनके आनन्द की सीमा न रही। उन्नत सौधारों तथा वृक्षों के शिखरों पर चढ़कर लोग इस दृश्य को देखने लगे। लगभग तीन कोस की दूरी पर भगवान् बाहुवलीश्रवलबेलगोल के गोम्मटेश्वर स्वामी-नन्दियों को चलाते आ रहे थे। महोन्नत शिलामूर्ति जो कि बारह पुरुषों के आकार-सी बड़ी है-एक सजीव, सौम्य पुरुष के रूप में दिखाई दे रही थी। गोम्मटेश्वर के प्रत्येक कदम पर धरती कॉपने लगती थी। उनके पद-तल मे जितने लता-गुल्म पड़ते थे, चूर-चूर हो जाते थे। अहंकार की भाँति जमीन के ऊपर सिर