Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 236
________________ अनेकान्त 58/3-4 भरतेश वैभव और शतकत्रयी के रचयिता रत्नाकरवर्णी मध्यकाल के उल्लेखनीय कन्नड़ कवि हैं । 101 यूं तो तेलुगु भाषा भी 2000 वर्ष प्राचीन है, आरम्भ में संस्कृत और प्राकृत को राज्याश्रय प्राप्त रहने से तेलुगु का व्यवहार आम जनता में घरों तक सीमित रहा। सातवाहन नरेशों ने शिलालेखों और दानपत्रों में तेलुगु का प्रयोग प्रारम्भ किया । ग्यारहवीं शती ई. में हुए नन्नय भट्ट तेलुगु के ज्ञात आदि- कवि पंडित माने जाते हैं उसके पूर्व का साहित्य धार्मिक विद्वेष की अग्नि में स्वाहा हो गया । तदपि उस अज्ञात युग में भी वांचियार नामक जैन लेखक द्वारा तेलुगु में छन्द शास्त्र लिखे जाने का श्रीपति पण्डित का और सन् 941 ई. में हुए पद्म कवि द्वारा जिनेन्द्र पुराण रचे जाने का उल्लेख मिलता है। जैन कवि भीमना के राघवपाण्डवीय काव्य को ब्राह्मण नन्नय भट्ट ने ईर्ष्यावश नष्ट करा दिया था । 1100 ई. में हुए जैन कवि मल्लना अपरनाम पावुलूरि ने पावुलूरि गणित रचा। कवि अघवर्ण ने तेलुगु में एक छन्दशास्त्र और दो व्याकरण ग्रन्थों की रचना की थी । आधुनिक काल में वेदम वेंकट शास्त्री ने बोब्बिलियुद्धमु नामक ऐतिहासिक नाटक और बोब्बिलिराजुकथा की रचना की और डॉ. चिलुकूरि नारायणराव ने जैन धर्म पर तेलुगु में पुस्तक लिखी । मलयालम साहित्य के इतिहास में जैन कृतियों और कृतिकारों का उल्लेख सम्प्रति देखने में नहीं आया । उपसंहार इस प्रकार दक्षिण भारत को अनेक प्रकाण्ड विद्वान्, वाग्मी और प्रभावक जैन आचार्यो को जन्म देने का श्रेय है जिन्होंने जैन धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया । 'पूज्यपाद' जैसे सम्मानसूचक विरुदों से विभूषित अकलंकदेव के प्रमाण संग्रह का मंगल

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