Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 242
________________ अनेकान्त 58/3-4 107 यह दरवाज़ा बहुत विशाल है। त्रिलोकीनाथ का यह दरबार है; दरबार का दरवाजा बड़ा होना ही चाहिये। इस दरवाजे के दाई ओर एक शिलालेख है, जिस पर भगवान भरत बाहुबली की कथा सविस्तार लिखी है और चामण्डराय द्वारा निर्माण की बात भी लिखी है जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्व की है। ___ अहो! दरवाजे के आगे यह बाई क्यों खड़ी है? यह बाई है कौन? खड़ी इसलिये है कि इसे यहां खड़े होने का हक है। यही वे जग प्रसिद्ध भक्तराज गुल्लिकायिज्जी हैं; और इनकी मूर्ति भी चामुण्डराय ने ही यहां स्थापित की है। इस स्तंभ के ऊपरी भाग में तो यक्ष ब्रह्मदेव बैठे हैं इसकी एक विशेषता है। यहाँ से देखने पर श्री बाहुबली का मस्तिष्क एवं चरण दोनों दिखते हैं। भगवान् बाहुबली का सबसे पहला महामस्तकाभिषेक करने का बड़ा भारी गौरवान्वित पद चामुण्डराय को नहीं, बल्कि बुढ़िया गुल्लिकायिज्जी को मिला। चामुण्डराय ने इस करुण प्रसंग को भी पत्थर पर अंकित कराकर अपनी इस हार को ऐसे अलौकिक ढंग से अमर बनाया है, जिससे उनके हृदय की विशालता भी अमर हो गई। चलिये, अब अंदर चलें। जिस सन्त के दर्शन के लिये आँखें वर्षों से तरस रही थीं; उस सन्त के साक्षात् दर्शन करके आत्मा, हृदय, और आँखों को ऐसे स्वर्गीय और अननुभूत सुख तथा तृप्ति का अनुभव होता है जिसे भाषा के शब्द व्यक्त नहीं कर सकते। आइये, पहले इस परकोटे और उसकी दीवारों को देखें। अखण्डबागिलु द्वार से घुसने पर 65 सीढियाँ चढ़ने के बाद यात्री पर्वतशिखर के ऊपर अवस्थित एक बड़े आंगन में प्रविष्ट होता है। इस आंगन के अन्दर एक और आंगन है और इसी में गोम्मटेश्वर भगवान् की मूर्ति स्थापित है। इस परकोटे को भक्तराज गंगराज ने सन् 1166 में बनवाया था। इन्होंने और इनके वंशजों ने जैन बद्री और इसके आसपास के 80 मी. की परिधि के ग्रामों में सैंकड़ों ऐसे विशाल मंदिर बनवाये थे

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