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अनेकान्त 58/3-4 डॉ. फर्ग्युसन ने इस स्तंभ की बड़ी तारीफ़ की है। इसके नीचे के भाग में कई सचित्र शिलालेख हैं। चँवरधारियों से आवेष्टित गुरु-शिष्य की मूर्ति को लोग चामुण्डराय और नेमिचन्द्र ‘सिद्धान्त चक्रवर्ती' की मूर्ति बताते है।
यह स्तंभ भी उसी चामुण्डराय ने बनवाया था जिसने भगवान् बाहबली की यह प्रतिमा बनावाई थी। चामुण्डराय गंग वंश के राजा राचमल्ल (चतुथ) के कमान्डर-इन-चीफ और प्रधानमंत्री थे। वे गोम्मटसार आदि ग्रंथों के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्ती के शिष्य थे। उनकी ही आज्ञानुसार उन्होंने इस मूर्ति का निर्माण कराकर उन्हीं के हाथों से इसकी प्रतिष्ठा कराई थी। यह घटना, इस स्तंभ पर उत्र्कीण की गई है। ___ आइये, अब भगवान् बाहुबली के दरबार को चलें। यह जो सामने छोटा-सा दरवाजा दिखाई दे रहा है यही उस दरबार के अदर जाने का रास्ता है। पर यह दरवाजा है कैसा? इसमें न कोई जोड़, न तोड़, न कहीं सीमेन्ट है और न कही चूना लगा है। एक बड़ी पर्वतशिला को कोर करके यह दरवाजा बनाया गया है।
इसकी दाहिनी ओर भगवान् बाहुबली का मंदिर है और बाई ओर भरत भगवान् का। भरत भगवान् का मंदिर यहां क्यों बनाया गया है? भगवान् बाहुबली के इस रूप में तपस्या करने में यह ही तो कारण हैं। यदि ये न होते, तो कौन जाने, भगवान बाहबली भी कलिकाल के हम पामर प्राणियों का उद्धार करने के लिये यहां खड़े होते या नहीं?
इस अखंडबागिलु की ऊपरी कमान को तो देखिये। कमल में स्थित लक्ष्मी जी को दो हाथी क्षीरोदधि के जल से स्नान करा रहे हैं। इस अखण्ड-बागिलु को भी चामुण्डराय ने ही बनवाया था।
आंगन पार करते ही यात्री भगवान् बाहुबली की प्रतिमावाले प्राकार के दरवाजे पर पहुंच जाता है। कड़ी धूप में चढ़ने वाला यात्री यहाँ की शीतल छाया में विश्राम पाकर आनन्द पाता है और बाद में आंगन के द्वार में घुसकर भगवान् बाहुबली के दरबार में हाजिर होता है। खुद आंगन का एक बड़ा दरवाजा है।