Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 231
________________ अनेकान्त 58/3-4 हेलीकाप्टर से गगन-परिक्रमा करते हुए भगवान् गोम्मटेश का सद्यजात सुगन्धित कुसुमों एवं मंत्र - पूत रजत - पुप्पो से अभिषेक किया था। इसी अवसर पर आयोजित एक विशाल सभा में भगवान् गोम्मटेश के चरणों में श्रद्धा अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने इस महान् कला-निधि को शक्ति और सौन्दर्य का, बल का प्रतीक बतलाया था । महामस्तकाभिषेक के आयोजन की संस्तुति करते हुए उन्होने इस अवसर को भारत की प्राचीन परम्परा का सुन्दर उदाहरण कहा था । भगवान् गोम्मटेश की विशेष वन्दना के निमित्त वह अपने साथ आस्था का अर्घ्य - चन्दन की माल, चांदी जड़ा श्रीफल और पूजन सामग्री ले गई थीं । उपर्युक्त सामग्री को आदरपूर्वक श्रवणबेलगोल के भट्टारक स्वामी को भेंट करते हुए उन्होंने कहा था- "इसे देश की ओर से और मेरी ओर से, अभिषेक के समय बाहुबली के चरणों में चढ़ा दीजिए।” 96 - 1617 दरीबाकला, दिल्ली- 11006 विशेष प्रस्तुत निबन्ध मे चर्चित शिलालेख जैन शिलालेख संग्रह (भाग एक) में उद्धृत है। सारा राष्ट्र ही जैन है घटना फरवरी 1981 की है। भारत की लोकप्रिय प्रधानमंत्री बाहुबली भगवान् श्रवणबेलगोला के महामस्तकाभिषेक समारोह मे अपने श्रद्धा सुमन अर्पित की राजधानी लोट आई। 26 फरवरी 1981 को ससद मे व्यंगात्मक ढंग से कुछ सासदो ने प्रश्न उठाया कि “क्या आप जैन हो गई है?" जो इतनी दूर जेन प्रतिभा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने गई । श्रीमती गाधी ने उत्तर दिया “मै महान भारतीय विचारो की एक प्रमुख धारा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने वहा गई थी, जिसका भारतीय इतिहास वे संस्कृति पर गहरा प्रभाव है और स्वतंत्रता संग्राम मे उन सिद्धांतो को अपनाया गया था । राष्ट्रपिता गाधी जी ने जैनियों के मूल सिद्धात अपरिग्रहक अहिसा के बल पर ही आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया था। मैं ही क्यों समस्त राष्ट्र ही जैन है, क्योकि हमारा राष्ट्र अहिंसावादी है ओर जैन धर्म का मूल सिद्धात अहिंसा है। हम जैन धर्म के आदर्श को नहीं छोडेंगें" इसके पश्चात संसद में एक दम शान्ति हो गई ।

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