________________
अनेकान्त 58/3-4
अवलोइउ भरहें पढमु भाइ। कइलासें कञ्चण-सइलु णाई।। असिय-सियायम्ब विहाइ दिट्टि। णं कुवलय-कमल-रविन्द-विहि ।। पुणु जोइउ वाहुवलीसरेण। सरे कुमुय-सण्डु णं दिणयरेण ।। अवरामुह-हेट्ठामुह-मुहाई। णं वर-वहु-वयण-सरोरुहाई।। उवरिल्लियएँ विसालएँ भिउडि-करालएँ हेट्ठिम दिट्ठि परिज्जय। णं णव-जोव्वणइत्ती चञ्चल-चित्ती कुलवहु इज्जएँ तज्जिय।।
(पउमचरिउ, सन्धि 4/9) अर्थात् उन्होंने (नन्दा और सुनन्दा के पुत्रों ने) दृष्टियुद्ध प्रारम्भ किया, सबसे पहले भरत ने अपने भाई को देखा, मानो कैलास पर्वत ने सुमेरु पर्वत को देखा हो। काले और सफेद बादलों के समान उसकी दृष्टि उस समय ऐसी शोभित हो रही थी मानो नीले और सफेद कमलों की वर्षा हो रही हो। उसके बाद बाहुबली ने भरत पर दृष्टिपात किया मानो सूर्य ने सरोवर में कुमुद-समूह को देखा हो। पराजित भरत का मुख उत्तम कुल-वधू की तरह सहसा नीचे झुक गया। बाहुबली की विशाल भौहों वाली दृष्टि से भरत की दृष्टि ऐसी नीची हो गयी जैसे सास से ताड़ित चंचलचित्त नवयौवना कुल-वधू नम्र हो जाती है।
दृष्टियुद्ध में पराजित होने पर भरत एवं बाहुबली में जल-युद्ध एवं बाह-युद्ध में विजयी होने पर बाहुबली ने पृथ्वी मडल के विजेता राजा भरत को हाथों पर इस प्रकार से उठा लिया जैसे जन्म के समय बालजिन को इन्द्रराज ने श्रद्धा से बाहुओ पर उठा लिया था
उच्चाइउ उभय-करेंहि गरिन्दु। सक्केण व जम्मणे जिण- वरिन्दु ।। एत्थन्तरें वाहुवलीसरासु। आमेल्लिउ देवेहिं कुसुम-वासु ।।
(पउमचरिउ, सन्धि 4/11) राजा बाहुबली के जयोत्सव पर स्वर्ग के देवों ने हर्षातिरेकपूर्वक पुष्प वृष्टि की। सम्राट भरत इस पराजय से हतप्रभ हो गये। लोक-नीति का