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अनेकान्त 58/3-4
में 41.5 फीट ऊँची; वेणूर में सन् 1604 ई. में 35 फीट ऊँची। ये मूर्तियाँ भी 'गोम्मट', 'गुम्मट' अथवा 'गोम्मटेश्वर' कहलाती हैं
जिनका निर्माण चामुण्डराय ने नहीं कराया। (b) चामुण्डराय के आश्रय में रहे कवि रन्न ने अपने ‘अजितपुराण'
(993 ई.) में गोम्मट नाम से कहीं भी उनका उल्लेख नहीं किया
(c) कवि दोड्डय ने अपने संस्कृत ग्रंथ 'भुजवलि शतक' सन् (1550)
में चामुण्डराय द्वारा मूर्ति का प्रकटीकरण करने का वर्णन करते
हुए कहीं भी उनका नाम ‘गोम्मट' उल्लेख नहीं किया है। (d) मूर्ति के निर्माण से 12 शताब्दी तक मूर्ति को 'कुकुटेश्वर'
'कुकुट-जिन' या 'दक्षिण कुकुट जिन' के नाम से जाना जाता था क्योंकि यह मान्यता थी कि उत्तर भारत की भरत द्वारा स्थापित मूर्ति कुक्कुट सर्पो द्वारा ढक दी गई है। नेमीचन्द्र आचार्य ने भी
इन्हीं नामों से मूर्ति को संबोधित किया है। (e) स्वयं चामुण्डराय ने मूर्ति के पादमूल में अंकित उपरोक्त वर्णित
तीनों अभिलेखों में कहीं भी अपने को 'गोम्मट' नहीं लिखा है।
'श्री चामुण्डराय करवियले' आदि लिखा गया है। (1) श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में जहाँ गोम्मट नाम का उल्लेख है ___ (No. 733 and No. 125) उनमें मूर्ति को 'गोम्मटदेव' और
चामुण्डराय को 'राय' कहा गया है। (g) श्री एम. गोविंद पाई का भी यही अभिमत है। कि बाहुबली का
ही अपर नाम 'गोम्मट' 'गुम्मट' था। पं. के.वी. शास्त्री ने 'गोम्मट' शब्द की व्युतपत्ति करते हुए इसका अर्थ ‘मोहक' प्रतिपादित किया है। कात्यायन की 'प्राकृत मंजरी' के अनुसार संस्कृत का ‘मन्मथ', प्राकृत में 'गुम्मह' और कन्नड़ में 'गम्मट' हो जाता है। कोंकणी भाषा का 'गोमेटो' संस्कृत के 'मन्मथ' का