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अनेकान्त 58/3-4 ही रूपान्तर है। गोम्मट संस्कृत के 'मन्मथ' शब्द का ही तद्भव रूप है और यह कामदेव का द्योतक है। अब प्रश्न उठता है कि बाबली क्या कामदेव कहलाते थे? यह सत्य है। जैन धर्मानुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव थे। 'तिलोयपण्णत्ती' अधिकार-4 मे लिखा है कि चौबीस तीर्थकरों के समय में महान्, सुंदर, प्रमुख चौवीस कामदेव होते है। इन कामदेवों में वाहवली प्रथम कामदेव थे। अतः इन्हें गोम्मटेश्वर में (कामदेवों में प्रमुख) कहते हैं। वे सर्वार्थ सिद्धि की अहमिन्द्र पर्याय से चलकर आए थे। चरम शरीरी और 525 धनुष की
उन्नत काय के धारी थे। (h) भगवान् वाहबली ने सिद्धत्व प्राप्त किया था। लौकिक व्यवहार
में भी अरिहंतो, सिद्धों, तीर्थकरों के नाम पर व्यक्तियों के नाम रखे जाते है, ना कि देहधारी ससारियों के नाम पर सिद्धों या अरिहंतों के। अत. ये समझना तर्क सगत नही कि बाहुबली की दिव्य प्रतिमा का नाम चामुण्डराय के अपर-नाम 'गोमट' के कारण ‘गोम्मटेश्वर' पड़ा। परन्तु ये अधिक तर्क संगत है कि 'गोम्मटेश्वर बाहुबली' की स्थापना के कारण लोगों ने चामुण्डराय को प्रेम से ‘गोमट' अथवा 'गोम्मट' पुकारना प्रारम्भ किया है। बाहुबली का स्वयं का नाम ही गोम्मटेश्वर था इनमें कोई संदेह प्रतीत नहीं होता।
बाहुबली कौन थे :
बाहुबली प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ (ऋषभदेव जिन) के पुत्र भरत जिनके नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा” के लघु भ्राता थे। ऋषभ देव का विवाह कच्छ और महाकच्छ राजा की राजकमारियों यशस्वती और सुनन्दा के साथ हुआ था। ‘महापुराण' में यशस्वती और सुनंदा ये दो रानियाँ बताई हैं। ‘पउमचरिउ' और श्वे. ग्रंथों में सुमंगला