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अनेकान्त 58/3-4
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(viii) निषद्या निर्माण-अर्हदादिकों व मुनियों के समाधिस्थान को निषद्या कहते हैं। श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में निषद्या निर्माण से सम्बन्धित अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। इसका निर्माण प्रकाशयुक्त व एकान्त स्थान पर किया जाता था। यह वसदि से न तो अधिक दूर तथा न ही अधिक समीप होता था। इसका निर्माण समतल भूमि तथा क्षपक वसदि की दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होता था। अभिलेखों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि निषद्या गुरु, पति, भ्राता, माता आदि की स्मृति में बनवाई जाती थी। चट्टिकब्बे ने अपने पति की निषद्या का निर्माण करवाया था।66 सिरियब्बे व नागियक्क ने सिङ्गिमय के समाधिमरण करने पर निषद्या का निर्माण करवाया।67 महानवमी मण्डप में उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार शुभचन्द्र मुनि का स्वर्गवास होने पर उनके शिष्य पद्यनन्दि पण्डितदेव और माधवचन्द्र ने उनकी निषद्या निर्मित करवाई। लक्खनन्दि, माधवेन्द्र और त्रिभुवनमल ने भी अपने गुरु के स्मारक रूप में निषद्या की प्रतिष्ठापना करवाई थी।69 मुनिराजो के अतिरिक्त राजा या उनके मन्त्री भी अपने गुरु आदि की स्मृति में निपद्या का निर्माण करवाते थे। पोय्सल महाराज गंगनरेश विष्णुवर्द्धन ने अपने गुरु शुभचन्द्र देव की निषद्या निर्मित करवाई थी। मन्त्री नागदेव ने भी अपने गुरु श्री नयनकीर्ति योगीन्द्र की निपद्या निर्मित करवाई। मेघचन्द्र विद्य के प्रमुख शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव ने महाप्रधान दण्डनायक गंगराज से अपने गुरु की निपद्या का निर्माण करवाया था। इनके अतिरिक्त अन्य अभिलेखों में भी निषद्या निर्माण के उल्लेख मिलते हैं।
(1x) अन्य दान-पूर्व वर्णित दानों के अतिरिक्त परकोटा निर्माण, तालाव निर्माण, पट्टशाला निर्माण, चैत्यालय निर्माण तथा स्तम्भ प्रतिष्ठा जैसे अन्य दानों के उल्लेख भी आलोच्य अभिलेखों में उपलब्ध होते हैं। गङ्गराज ने गङ्गवाड़ि में प्रतिष्ठापित गोम्मेटश्वर की प्रतिमा का परकोटा तथा अनेक जैन वसदियों का जीर्णोद्धार करवाया। गोम्मटेश्वर द्वार की दायीं ओर एक पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन आता है कि बालचन्द्र ने